संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

राजस्थान : लॉकडाउन की आड़ में जबरन ज़मीन अधिग्रहण की कोशिश

राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर के रानीसर गांव में माहौल गरम है। एक ओर पुलिस और ठेकेदार हैं तो दूसरी ओर किसान। लॉकडाउन की आड़ में जबरन सड़क के लिए ज़मीन अधिग्रहण करने आये पुलिसवालों के साथ किसानों की बातचीत तनावपूर्ण स्थिति में पहुंच गयी है। मामला भारतमाला प्रोजेक्ट के अंतर्गत बनाये जा रहे राष्ट्रीय राजमार्ग 754k का है।

किसानों का आरोप है कि बीकानेर, लूणकरणसर, नोखा तहसील के जिन 41 गांवों के किसानो के खेत से होकर यह राष्ट्रीय राजमार्ग गुजर रहा है उन किसानों से सरकार मामूली डीएलसी रेट पर जमीन का अधिग्रहण कर रही है! इस ज़मीन का जहां बाजार मूल्य दो लाख रुपये है वहां सरकार करीब 50 हजार रुपये दे रही है। सरकार 1 खेजड़ी के करीब 15 रुपये दे रही है जबकि खेजड़ी से सांगरी जैसी सब्जी, पशुओं का चारा, लकड़ी उपलब्ध होता है।

किसान पिछले साल भर से आंदोलन कर रहे हैं। पूरे राजस्थान के किसानों ने मिलकर जालौर के बागोड़ा में आंदोलन किया। किसान बाग में सरकार ने बात नहीं मानी तो 211 किसान 10 दिनों तक भूख हड़ताल पर बैठे रहे, तभी अचानक कोरोना महामारी को देखते हुए किसानों ने सरकार का सहयोग करने के लिए अपना आंदोलन स्थगित करने का निर्णय लिया।

इसका फायदा उठाते हुए किसानों के इस सहयोग के बदले कोरोना महामारी के इस दौर में सरकार और ठेकेदारों ने पुलिस के डंडे के दम पर किसानों को उनके खेतों से मुआवजा दिए बिना खदेड़ना शुरू किया है। शनिवार की दोपहर रानीसर गांव के खेतों में किसानों और ठेकेदारों के बीच जो नज़ारा देखने को मिला, वह किसी लम्बे भीषण संघर्ष की आहट है।

स्थानीय किसान और किसान नेता प्रभु मुंड ने शनिवार को पुलिस और ठेकेदारों के विरोध का पूरा वीडियो बनाकर फेसबुक पर वायरल किया। पूरे 40 मिनट के इस वीडियो से समझ में आता है कि कैसे लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग का बहाना बनाकर किसानों के विरोध को लॉ एंड आर्डर की स्थिति से जोड़ा गया जबकि किसान खुद आपस में सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करने की बात कह रहे हैं।खबर लिखे जाने तक पुलिस और विरोधरत किसानों के बीच बहस चालू थी। कुछ किसान नेताओं के रास्ते में होने की ख़बर है। प्रभु मुंड ने इस पूरी वार्ता को लाइव किया है।

इस मामले में स्थानीय एडवोकेट भरतराम कासवान ने दो दिन पहले एक लंबा नोट लिखकर किसानों को कानूनी पहलू समझाने की कोशिश की थी, कि आखिर यह ज़मीन अधिग्रहण क्यों गलत है और कानून में उन्हें इसके प्रति क्या सुरक्षा प्राप्त है। कासवान ने लिखा हैः

“हम किसानों का दावा इन दो कानूनी नियमों से भी मजबूत मान सकते हैं। पहला, आर्टिकल (300)A:

भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि “राज्य द्वारा उचित न्यायिक प्रक्रिया का पालन किये बिना नागरिकों को उनकी निजी संपत्ति से ज़बरन वंचित करना मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत प्राप्त संवैधानिक अधिकार का भी उल्लंघन होगा।” सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक, कानून से शासित किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य कानून की अनुमति के बिना नागरिकों से उनकी संपत्ति नहीं छीन सकता..!

दूसरा: भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 संशोधन बिल लोकसभा में हुआ था जिसके तहत किसानों की सहमति के बिना उनकी भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता, अगर होगा तो ग्रामीण इलाके में बाजार भाव से #चार गुणा मिलेगा..! जिस जमीन की कीमत सरकार दो कौड़ी की समझ रही है वो जमीन, जमीन ही नहीं किसानों के लिए एक शरीर का अंग है उस जमीन कि देख रेख में अपने शरीर पर कपड़ों के चिथड़े उड़ जाते है सर्दी और गर्मी की परवाह किए बगैर अर्धनग्न तन पर खेती करके वो पूरे देश का पेट भरता! मगर अफसोस आज देश में किसानों को मंदिर का ऐसा घंटा बना दिया है, जिसको प्रकृति बजाती है, पूंजीवादी लोग बजाते हैं,दलाल बजाते है और बचा खुचा सरकार बजा देती हैं..!”

साभार : https://junputh.com/

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