संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

राष्ट्रीय बजट का आधा हिस्सा हो किसानों के लिए : राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति का जंतर मंतर पर सत्याग्रह; 1 फरवरी 2020

दिल्राली 28 जनवरी 2020। राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति ने माननीय प्रधानमंत्रीजी को पत्र लिखकरमांग की है कि किसानों और गांवों का देश कहे जानेवाले भारत में किसान, कृषि और गांव केंद्रित अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने के लिये किसान की जनसंख्या के आधार पर कमसे कम 50 प्रतिशत बजट राशि आवंटित करे। 1 फरवरी 2020 को जब संसद में बजट पेश किया जायेगा तब देश भर से आये किसान प्रतिनीधि जंतर मंतर पर इकठ्ठा होकर कृषि पर बजट आवंटन पर ध्यान ध्यान रखेंगे। और अगर सरकार किसानों के लिये बजट में उचित प्रावधान नही करती है, पक्षपात और अन्याय करती है, तब बजट के विरुद्धसंसद मार्च करते हुये सत्याग्रह करेंगे। रा.कि.स.स. देश के किसानों को आवाहन करती है कि देशभर से किसान इस सत्याग्रह में बडी संख्या में शामिल हो और साथ ही अपने अपने क्षेत्र में भी आंदोलन करे।

केंद्र सरकार का बजट, जो सरकार की नीतियां और प्राथमिकता स्पष्ट करती है, उसमें गावों और किसानों के लिये कुल बजट में केवल 4 प्रतिशत के आसपास राशि आवंटित की जाती है।यह किसानों पर अन्याय है। लेकिन सरकारें हमेशा झूठ फैलाती रहती है कि, उनके द्वारा पेश किया गया बजट गांव, गरीब, किसान और आदिवासीयों के लिये समर्पित है। इस देश मेंकेंद्र सरकार के 1 करोड़ नौकरदारों के लिये लगभग 5.75 लाख करोड़ रुपये बजट खर्च किया जाता है। पिछले साल देश की रक्षा के लिये 3 लाख करोड रुपयों का बजट प्रावधान किया गया था। बडी बडी कंपनियों को हरसाल टैक्स में लाखों करोड़ रुपये छूट दी जाती है। कारपोरेट घरानोंको लाखो करोड़ रुपयों के कर्ज माफ किये जाते है। कारपोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से 22 प्रतिशत कियागया है। लेकिन देश का मुख्य समाज जो खेती पर निर्भरहै और जिनके लिये यह व्यवस्था चलाई जा रही है, उन 60 प्रतिशत लोगों के लिये केवल 4 प्रतिशत के आसपास बजट रखा जाता है। जिसमें भी किसानों के लिये बजट में केवल दो प्रतिशत हिस्सा होता है।

आज किसान और गांव एक शोषणकारी व्यवस्था के शिकार होने से पूरी तरह बदहाल हो चुके है।गांवों को समृद्ध बनाने के बदले गावों का शोषण कर शहरीकरण को प्रोत्साहित किया गया है। सरकारों ने किसानों की भलाई के लिये नही बल्कि किसानों और गांवों की लूट कर बडी बडी कारपोरेट कंपनियों को लाभ पहुंचानेवाली योजनाऐं बनाई है। गांवों के लिये खर्च होनेवाली बजट राशि भी गांवों के लिये नही बल्कि गांवों को लूटने के रास्ते बनाने के लिये खर्च की जाती है। विकास के नामपर किसानों से खेती की जमीन छीनि जा रही है। सिंचाई के लिये किसानों को पानी बेचने के लिये कानूनी प्रावधान किये गये है। ऐसी अनेक किसान विरोधी नीतियों द्वारा किसानों की लूट की व्यवस्था बनाई गई है।

देश की तस्वीर बदलने और किसानों, गावों को उनका हक देने के लिये स्वतंत्र बजट रखकर देश की नीतियों को गांव केंद्रित, किसान केंद्रित बनाना होगा। और यह तभी संभव है जब कृषि और किसानों की उन्नति के लिये जनसंख्या के अनुपात में बजट में हिस्सेदारी मिलेगी। आज 60 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है और खेती पर निर्भर है। कृषि और ग्रामोद्योग सबसे अधिक रोजगार और आमदनी का स्रोत है। उनके लिये कमसे कम 50 प्रतिशत बजट रखना होगा। भारत की अर्थव्यवस्था के केंद्र में उद्योग, सेवा नही बल्कि कृषि को होना होगा। उसी जरुरत के मुताबिक बजट आवंटन करना होगा। किसान और गांवों की स्थिति में बुनियादी बदलाव लाने के लिये, शोषणमुक्त व्यवस्था के लिये राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति ने 26 सूत्री प्रस्ताव दिया है। हम मांग करते है कि सरकार किसानों और ग्राम समृद्धि के लिये बजट में कमसे कम 50 प्रतिशत राशि आवंटित करे। इस बजट में रा.कि.स.स. के प्रस्ताव के अनुसार आप इस दिशा में पहल करेंगे ऐसी आशा करते है।

देश में सभी नागरिकों के अधिकार समान होने के बावजूद, समान काम के लिये समान मजदूरी का कानूनी प्रावधान होने के बावजूद जब किसान अपने अधिकारों की मांग करते है, अपने दिनभर मेहनत के बदले न्याय श्रममूल्य मांगते है, फसलों को उत्पादन खर्च पर आधारित दाम मिलने की व्यवस्था मांगते है, खेती के लिये सहयोग राशि मांगते है, बीजों पर अपना अधिकार सुरक्षित रखने की मांग करते है, कीटनाशक और रासायनिक खाद में कंपनियों द्वारा होनेवाले लूट को रोकने की मांग करते है, प्राकृतिक आपदा में हुई नुकसान भरपाई मांगते है, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से प्राप्त लाभ में अपनी हिस्सेदारी मांगते है, गावों में ग्रामोद्योग, कुटीरद्योग के लिये मदद मांगते है, कर्ज से मुक्ति मांगते है, तब उन्हे पूछा जाता है कि सरकार उन्हे मदद क्यों दे? किसानों को क्या सारा मुफ़्त में ही चाहिये? आर्थिक लूट के साथ अपनी नीतियों के जरिये किसानों की प्रतिष्ठाको, उनके गरिमा को हानि पहुंचाने का काम सरकारें करती आयी है।

इन सभी किसान विरोधी नीतियों का परिणाम है कि देश के किसान परिवार में हरसाल 60 हजार से अधिक आत्महत्याऐं हो रही है।
देश के सभी राज्यों के किसानों की कर्जमाफी के लिये केंद्र सरकार को चाहिये था कि वह सभी राज्यों के साथ बातचीत कर योजना बनाती। लेकिन सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण जहां आर्थिक दृष्टिसे कमजोर राज्य कर्जमाफी नही कर पाये वहां के किसानों को कर्जमाफी का लाभ नही मिल सका। आर्थिक दृष्टिसे सक्षम राज्योंने किसानों के कर्जमाफ तो किये है लेकिन वहां भी केंद्र सरकार के असहयोग के कारण कर्जमाफी का लाभ सभी किसानों को नही मिल पाया। इसके लिये केंद्र सरकार की नकारात्मक भूमिका जिम्मेदार है।

सरकार ने बार बार किसानों की आय दोगुनी करने का आश्वासन दिया है। लेकिन उसके लिये सरकार को सभी फसलों की खरीद करनी होगी, जो आज कुल उत्पादन के 10 प्रतिशत से भी कम की जाती है, उसके लिये गोडउन बनाने होंगे। या फिर खुले बाजार में फसल बिक्री में उत्पादन मूल्य में हो रही नुकसान भरपाई देनी होगी। सरकार यह तभी कर पायेगी जब किसानों की आय दोगुनी करने की सभी योजनाओं के लिये बजट में प्रावधान करेगी। बजट में प्रावधान किये बिना घोषणाओं से किसानों की आय दोगुनी नही होगी।

हम किसान प्रतिनिधि जंतर मंतर पर इकट्ठा होकर वर्ष 2020 का वार्षिक बजट सुनेंगे और आशा रखते है कि आप देश की भलाई के लिये, किसानों के भलाई के लिये निष्पक्षता से निर्णय करेंगे। अगर किसानों के लिये कदम पहली नही की गई तो उसका निषेध करने के लिये संसद भवन तक मार्च कर सरकार से फिर एक बार निवेदन करेने के लिये सत्याग्रह करेंगे।

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