संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

हिमाचल प्रदेश: लाहौल स्पीति में जलविद्युत परियोजना के खिलाफ जनता का विरोध प्रदर्शन

बीते 23 मई  को लाहौल स्पीति एकता मंच के बैनर तले लाहौल स्पीति के उदयपुर में बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों ने एकजुट होकर चेनाब घाटी में प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं के विरोध में रैली निकाली और मंच ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू को ज्ञापन दिया। ज्ञापन में कहा है कि चेनाब नदी में प्रस्तावित सेली और मियार जल विद्युत परियोजनाओं के लिए तेलंगाना सरकार के साथ किए गए समझौता ज्ञापन (एमओयू) को तुरंत रद्द किया जाए। 

लाहौल स्पीति एकता मंच के मुताबिक, लाहौल एक ठंडा मरुस्थलीय क्षेत्र है जो भौगोलिक और पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। यहां वनस्पति आवरण भी अत्यंत सीमित है। यह क्षेत्र भारतीय हिमालय के सबसे अधिक आपदा-प्रवण क्षेत्रों में से एक है। साथ ही, यह क्षेत्र एक जनजातीय क्षेत्र है जिसे संविधान की पांचवी अनुसूची के अंतर्गत विशेष संरक्षण प्राप्त है। अतः इस क्षेत्र में किसी भी विकास परियोजना को लागू करने से पहले जनजातीय अधिकारों और पारिस्थितिकी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

मंच की तरफ से जारी वक्तव्य में कहा गया है कि चेनाब नदी पर प्रस्तावित कुल 17 बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं लाहौल घाटी की पारिस्थितिकी और सामाजिक ताने-बाने पर गंभीर प्रभाव डालेंगी। चेनाब बेसिन की समेकित पर्यावरण प्रभाव आकलन (सीईआईए) रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है। केवल सारांश के आधार पर जनसुनवाइयां करवाई गईं, जिसका स्थानीय निवासियों ने तीव्र विरोध किया।

मंच का कहना है कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) भोपाल द्वारा किए गए अध्ययन में लाहौल-स्पीति को हिमस्खलन की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील बताया गया है। इसके बावजूद, सेली और मियार जल विद्युत परियोजनाओं की पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) रिपोर्ट में हिम झीलों, हिमस्खलनों तथा उनके नदी प्रवाह पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख नहीं है। यह भी कहा गया है कि इस क्षेत्र के अधिकांश गांव नदी के किनारों पर स्थित हैं, जो हिमाच्छादित मलबों पर बसे हैं और भूमि धंसने व भूस्खलन के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं।

परियोजनाओं के कारण आवासीय और कृषि भूमि डूबने की आशंका है और विस्थापित समुदायों के पुनर्वास के लिए पर्याप्त भूमि भी उपलब्ध नहीं है। यहां की ठंडी जलवायु में सिंचाई के बिना कृषि संभव नहीं है और सुरंग निर्माण से प्राकृतिक जलस्रोत जैसे झरनों व रिसावों पर बुरा असर पड़ेगा।

सेली परियोजना की सुरंग मदग्राम गांव के नीचे से जाने वाली है, जो पूरी तरह से झरने के पानी पर निर्भर है। मंच के मुताबिक, मियार घाटी अपनी सुंदरता और जैव विविधता के लिए जानी जाती है। यह 2013 की बाढ़ में गंभीर रूप से प्रभावित हुई थी। मियार परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण वर्ष 2011 में हुआ था, किंतु अब तक परियोजना धारकों ने कानूनी रूप से भूमि का अधिग्रहण नहीं किया है, जिससे यह अधिग्रहण शून्य माना जाना चाहिए। साथ ही, सेली परियोजना ने प्रभावित ग्राम सभाओं से वन भूमि हस्तांतरण के लिए आवश्यक अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) भी प्राप्त नहीं किया है।

पांचवीं अनुसूची और वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत यह प्रक्रिया अनिवार्य है। मंच ने मांग की है कि जब तक पूरी सीईआईए रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाती और पांचवी अनुसूची क्षेत्रों के अनुरूप समुचित जनसुनवाई नहीं होती, तब तक लाहौल घाटी में प्रस्तावित सभी जल विद्युत परियोजनाओं पर तत्काल रोक लगाई जाए।

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि सेली और मियार जल विद्युत परियोजनाओं का पुनर्मूल्यांकन अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि इनकी पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) रिपोर्ट अधूरी और अपर्याप्त हैं। इन रिपोर्टों में हिम झीलों की उपस्थिति, हिमस्खलन के जोखिम, सुरंग निर्माण का जल स्रोतों पर प्रभाव तथा भारी मात्रा में वनों की कटाई जैसे गंभीर मुद्दों की अनदेखी की गई है। इन महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी इस क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी, जनजातीय समुदायों की पारंपरिक आजीविका और संविधान के पांचवी अनुसूची के अंतर्गत संरक्षित अधिकारों के लिए सीधा खतरा उत्पन्न करती है।

मंच ने मांग की है कि जब तक एक पूर्ण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समग्र और पारदर्शी रिपोर्ट तैयार कर सार्वजनिक नहीं की जाती, तब तक इन दोनों परियोजनाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए और तेलंगाना सरकार के साथ किए गए एमओयू को स्थगित किया जाना चाहिए।

हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि एक चेनाब घाटी बची थी जिसमें बड़े पैमाने पर जल विद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित नहीं थीं। पिछले कुछ सालों से इसकी शुरुआत हुई है। उनका कहना है कि हिमाचल प्रदेश के 90 डिग्री में खड़े कच्चे पहाड़ में छेड़छाड़ करोगे तो वह टूट जाएगा। उन्होंने बताया कि इस इलाके में बड़े पैमाने पर भूगर्भीय गतिविधियां चलती हैं और बड़ी परियोजनाएं यहां भूकंप का खतरा बढ़ाएंगी।

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(डाउन टू अर्थ से साभार प्रकाशित) 

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