संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

जल विद्युत परियोजनाओं के विरुद्ध संघंर्ष जारी, प्रदर्शन कर आन्दोलनकारियों की रिहाई की माँग

उच्च न्यायालय के फैसले से मिला संबल
अन्ततः उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने टिहरी जिले की घनशाली तहसील में भिलंगना नदी पर ‘स्वाति पावर इंजीनियरिंग लि.’ द्वारा बनाई जा रही जल विद्युत परियोजना की केन्द्र सरकार से पुर्नसमीक्षा कर तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। इस परियोजना से फलिण्डा, सरूणा,    थेलि, रौंसाल, जनेत, बहेड़ा व डाबसौड़ा गांवों के 500 परिवारों के ऊपर खतरा उत्पन्न हो गया था। भिलंगना नदी के दोनों ओर ग्रामीणों द्वारा बनाई गई 6 सिंचाई मूलें, 6 श्मसानघाट व दो घराट (पनचक्की) के अलावा आसपास का हरा-भरा जंगल व गौचर, पनघट भी परियोजना की जद में आ गये थे। ग्रामीणों ने परियोजना का लगातार विरोध किया था।
26 फरवरी 2011 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बारिन घोष तथा न्यायमूर्ति बी.के.बिष्ट की खण्डपीठ द्वारा मामले की सुनवाई की गई, जिसमें पक्षकार के अधिवक्ता सिद्धार्थ साह एवं केन्द्र सरकार की स्थाई अधिवक्ता श्रीमती अंजली भार्गव द्वारा मामले में बहस की गई। जब स्वाति पावर इंजीनियरिंग कंपनी को वर्ष 2001 में 11 मेगावाट क्षमता की पन बिजली परियोजना स्वीकृत की गई थी तो उस समय स्वीकृति की शर्त 6 में यह स्पष्ट उल्लेख था कि स्थिति की पुनः समीक्षा करनी होगी। परंतु वर्ष 2004 में केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा परियोजना की क्षमता को 11 मेगावाट करने की मंजूरी दे दी गई, जबकि परियोजना की कोई समीक्षा नहीं की गई। मामले को गंभीरता से लेते हुए माननीय उच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को निर्देशित किया कि वह परियोजना की समीक्षा कर उच्च न्यायालय में तीन माह में रिपोर्ट प्रस्तुत करे।
उच्च न्यायालय के इस फैसले से परियोजना से प्रभावित गांवों के लोग खासे उत्साहित हैं। भिलंगना घाटी बांध निजीकरण विरोधी संघर्ष संगठन फलिण्डा का कहना है कि न्यायालय द्वारा परियोजना की पुर्नसमीक्षा के निर्देश दिये जाने से भविष्य में प्रभावित ग्रामीणों के सभी लंबित मामलों पर उनके पक्ष में फैसला होने की उम्मीद बन गई है।  फलिण्डा जलविद्युत परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों ने लंबी लड़ाई लड़ी है। कई बार पुलिस प्रशासन के डंडे खाने के अलावा जेलों में बंद रहे प्रताड़ित हुए हैं। 26 मार्च से 3 अप्रैल 2006 तक विभिन्न संगठनों के सहयोग से फलिण्डा के ग्रामीणों ने देहरादून से फलिण्डा तक पदयात्रा की जिसमें नवोदित राज्य के परिप्रेक्ष्य में विकास की विनाशकारी अवधारणा को लेकर जनजागरण किया गया। 4 मई 2006 को उत्तराखंड महिला मंच व लोक वाहिनी की अगुवाई में आंदोलनकारियों की आयुक्त गढ़वाल मंडल के साथ एक 9 बिंदुओं का ऐतिहासिक समझौता हुआ । इस बैठक में आयुक्त व जिला प्रशासन टिहरी ने माना कि भिलंगना नदी के पानी पर पहला हक वहां के ग्रामीणों का है। उनकी सिंचाई आदि की आवश्यकताएं पूर्ण करने के बाद ही बचा हुआ पानी पावर इंजीननियरिंग कंपनी को दिया जायेगा।
यही हाल उत्तराखंड की अन्य नदियों का है जहां जनता को विश्वास में लिए बगैर बन रही हैं, जल विद्युत परियोजनायें। जगह-जगह इन परियोजनाओं के विरोध में वहां कि जनता आंदोलित है। शासन-प्रशासन निर्माता कंपनियों के पक्ष में खड़ा होकर आंदोलनकारियों का दमन कर रहा है। 30 जनवरी को मंदाकिनी नदी पर ‘लार्सन एंड टर्बो’ कंपनी द्वारा बनाई जा रही ‘सिंगोली- भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना’ का विरोध कर रहे आंदोलनकारियों- सुशीला भंडारी एवं जगमोहन झिंक्वाण को पुलिस-प्रशासन ने जेलों में बंद कर दिया। उनकी बिना शर्त रिहाई को लेकर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। 23 फरवरी को उत्तरकाशी में प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन वहां के   जिलाधिकारी को सौंपा गया। 27 फरवरी को रूद्रप्रयाग में उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे आंदोलनकारियों ने ‘केदार घाटी बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले एक बैठक कर परियोजना का विरोध करते हुए जेल में बंद आंदोलनकारी सुशीला भंडारी व जगमोहन झिंक्वाण की बिना शर्त रिहा करने की मांग की। बैठक की अध्यक्षता ‘नदी बचाओ आंदोलन’ की बसन्ती बहिन व पीयूसीएल के प्रदेश उपाध्यक्ष नन्दा बल्लभ भट्ट ने व संचालन संघर्ष समिति के अध्यक्ष गंगाधर नौटियाल ने किया। (‘‘नैनीताल समाचार’’ पर आधारित)

 

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