संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

कारपोरेट, कंपनियों तथा भू-माफियाओं के सामने झारखण्ड सरकार ने टेके घुटने

छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट तथा संथाल परगना टेनेंसी एक्ट को
सख्ती से लागू करने की मांग को लेकर जारी संघर्ष
 
सी.एन.टी. एक्ट को सख्ती से लागू करवाने के आदेश पर मुख्यमंत्री द्वारा रोक लगाने के खिलाफ झारखंड वासियों ने पूरे राज्य में  आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। झारखंड के कई जनसंगठनों ने दिसम्बर 2010 से मार्च 2011 तक लगातार राज्यपाल, राजभवन के सामने प्रदर्शन करके सरकार को चेतावनी दी है कि अमर शहीद बिरसा मुंडा की धरती में इन भूमि लुटेरों को मार-भगाने का संकल्प लेकर हम आंदोलन को और तेज करेंगे तथा भूमि लुटेरों के हित में सी.एन.टी. तथा एस.पी.टी. एक्ट के प्रावधानों को ठंडे बस्ते में डालने की किसी सरकारी, गैर सरकारी साजिश को स्वीकार नहीं करेंगे।
छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट (सी.एन.टी.) तथा संथाल परगना टेनेन्सी एक्ट (एस.पी.टी.) भी ऐसे ही दो कानून हैं जिनके सख्ती से लागू न होने के कारण आदिवासियों तथा अन्य पिछड़ी जातियों को अपनी जमीन बचा पाना मुश्किल होता जा रहा है।
अपना जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए संघर्षरत लोगों का कहना है कि ऐसी ही एक घटना झारखंड राज्य की है, जहां पिछले साल 4 दिसम्बर 2010 को झारखंड के राजस्व सचिव ने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम को सख्ती से लागू करने के लिए एक आदेश जारी किया। मगर भू-माफियाओं तथा बड़े कारपोरेट्स के दबाव में आकर मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने इस आदेश पर रोक लगवा दी।
राजस्व सचिव के 4 दिसम्बर 2010 के आदेश से यह बात प्रकट हुई कि एस.पी.टी. एक्ट की तरह सी.एन.टी. एक्ट में भी यह प्रावधान है कि पिछड़ी जातियों और अनूसूचित जातियों के सदस्य सिर्फ पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जाति के लोगों को ही अपनी जमीन हस्तांतरित कर सकते हैं। छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 में कई संशोधन हुए हैं, 1955 में किये गये संशोधन के जरिये जमीन के हस्तांतरण के बारे में जो प्रावधान किये गये हैं, वे आज भी लागू हैं। एक्ट में कहा गया है कि भूमि के स्थानांतरण से अर्थ है बिक्री, दान, विनिमय, वसीयत या बंधक कोई भी तरीका अपनाकर किसी की जमीन दूसरे के हाथ में चली जाना। छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 की धारा 46 में भूमि हस्तांतरण के संबंध में निम्नलिखित प्रावधान हैं-
46(क)  कोई आदिवासी अपनी जमीन (होल्डिंग) या उसके किसी भाग पर अपने हक को सिर्फ किसी दूसरे आदिवासी को ही हस्तांतरित कर सकता है, बशर्ते वह उसी थाना क्षेत्र का निवासी हो जिसमें वह जमीन है, किंतु इससे पहले उपायुक्त की अनुमति लेना अनिवार्य है।
46(ख) कोई अनुसूचित जाति या सूचीबद्ध खास पिछड़ी जाति का सदस्य अपनी जमीन को या उसके किसी भाग को सिर्फ दूसरे अनुसूचित जाति या सूचीबद्ध खास पिछड़ी जाति के सदस्य को ही हस्तांतरित कर सकता है बशर्ते कि वह उसी जिले का निवासी हो मगर इसके पहले उपायुक्त से अनुमति लेना अनिवार्य है।
46(घ)  अन्य सभी प्रकार के रैयत अन्य किसी भी व्यक्ति को अपनी भूमि हस्तांतरित कर सकते हैं। इसके लिए उनको उपायुक्त से अनुमति लेना जरूरी नहीं है।
मगर इन नियमों के बावजूद भी झारखंड में जल- जंगल-जमीन पर कारपोरेट्स के हमलों में तेजी आई है। एक तरफ पिछले 150 वर्षों में एक करोड़ लोग अपनी जमीनों, रिहाइशों, संसाधनों, अपनी आजीविका तथा संस्कृति से उजड़े है तथा इनमें से आधे से अधिक लोग झारखंड से पलायन करने के लिए मजबूर हुए हैं।
वहीं दूसरी तरफ उनकी जमीनों और संसाधनों पर बड़े पैमाने पर पूंजीपतियों, उद्योगपतियों तथा अन्य धनी   लोगों ने कब्जा जमा लिया। शहरों के अगल-बगल भू-माफिया रीयल स्टेट धन्धे के लिए सड़कों के किनारे की जमीन लगातार खरीदते, कब्जाते जा रहे हैं।
इस बीच जमीन कब्जाने के लिए आतुर कंपनियां जमीनें हासिल करने के लिए नये-नये हथकण्डे अपना रही हैं। जो कुछ जमीनें उन्होंने सी.एन.टी. एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए खरीदी थीं उसके भी दाखिल-खारिज प्रक्रिया को रोकने के लिए आंदोलकारियों ने आपत्तियां दर्ज की हैं। फलतः फौरी तौर पर इस इलाके में जमीनों की खरीद रुक गयी है। अतएव अब कंपनियां नयी-नयी साजिशों की योजना बना रही है। छत्तीसगढ़ में रायगढ़ जिले के तमनार इलाके में जिस तरह जिंदल ने फर्जी आदिवासी नामों से अपनी कंपनी के लिए जमीनें खरीदी हैं उसी तर्ज पर जिंदल, भूषण और अन्य कंपनियां भी फर्जी आदिवासी नामों से इस इलाके में भी जमीनें खरीदने-हथियाने की योजना बना रही हैं।
आदिवासियों के जीवन, जीविका, जल-जंगल- जमीन के सवाल पर संघर्षरत जन संघर्षों ने इन साजिशों से निपटने की भी तैयारी शुरू कर दी है और गांव-गांव में सभायें, बैठकें आयोजित करके लोगों को संभावित हथकण्डों तथा साजिशों से अवगत करा रहे हैं। -कुमारचन्द मार्डी, जमशेदपुर से

 

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