संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

क्या है भूमि अधिग्रहण संशोधित विधेयक : विरोध में 5 जुलाई को झारखण्ड बंद

भूमि अधिग्रहण और पुनर्व्यवस्थापन में अचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार (झारखंड संशोधन) विधेयक 2017 को राष्ट्रपति के मंजूरी के बाद राज्य में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई। 5 जुलाई को झारखण्ड बंद  की घोषणा की गई। इस विधेयक पर राज्यपाल की सहमति मिल जाने के बाद विधि विभाग अधिसूचना जारी करेगा और कानून के रूप में राज्य में लागू हो जायेगा। राजनीतिक सरगर्मी के बीच भूमि अधिग्रहण संशोधित विधेयक क्या है? कानून में किस तरह का संशोधन किया गया है? और संशोधन का उदेश्य क्या है? इन कानूनी बारीकियों और संशोधन पर जानेमाने कानूनविद रश्मि कात्यायन से न्यूजविंग संवाददाता प्रवीण कुमार ने खास बातचीत की बातचीत के मुख्य अंश;

सवाल : सरकार के द्वारा भूमि अधिग्रहण और पुनर्व्यवस्थापन में अचित प्रतिकार और पारदर्शिता का अधिकार (झारखंड संशोधन) विधेयक 2017 अब कानून का रूप लेगा। इसमें क्या खास है।

रश्मि कात्यायन : यह कोई नया कानून नहीं है। यह 2013 को बनाया गया कानून है, जिसमें सरकार ने संशोधन किया है। नये संशोधन को जानने से पहले पुराने मूल कानून और उसके स्वरूप और मकसद को जानने-समझने की जरूरत है, जिसे भूमि अधिग्रहण कानून 2013 कहा जाता है। लेकिन मूल कानून में कहीं ऐसा नहीं है। इस नए संशोधन में जिसकी राष्ट्रपति की मंजूरी मिल चूकी है, उस में सामाजिक समाघात का निर्धारण अर्थात सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। किसी भी प्रोजेक्ट के लिए जमीन लेने से पहले सामाजिक समाघात यानी उसके कारण अगल-बगल में प्रभाव को समझना होता है। जमीन अधिग्रहण से क्या प्रभाव पडेगा? इस कानून में इसे खत्म कर दिया गया है। लोगों को पता होना चाहिये कि जमीन क्यों लिया जा रहा है। किसके लिये लिया जा रहा है। उससे किसको फायदा होगा। पुराने कानून में 70 प्रतिशत रैयतों की मंजूरी जिक्र है। पर इस कानून में अब यह नहीं है। संशोधन में सामाजिक समाघात के चैप्टर दो एवं चैप्टर 3 में फूड सिक्यूरिटी की बात है, जिसमें खेती बारी के लिए कृषि योग्य भूमि की बात है, इसे भी हटा दिया गया है।

सवाल : पुराने कानून में जमीन अधिग्रहण करने में कृषि योग्य जमीन पर बंदिश थी। अब वह नही रह गई?

रश्मि कात्यायन : हां, नये संशोधन में कृषि योग्य भूमि को सुरक्षा प्रदान की गई थी, जिसे झारखंड में लागू होने वाले कानून में संशोधन के दैरान हटा दिया गया है। नये कानून लागू होंने के बाद खेती की भूमि के अधिग्रहण से राज्य के लोगो के समक्ष भूखे मरने की नौबत आ सकती है।

सवाल : कानून में जो नया संशोधन हुआ है, उसमें ग्रामसभा का स्वीकृति की के स्थान परामर्श शब्दों का इस्तेमाल हुआ है। इसका क्या मतलब है?

रश्मि कात्यायन : पुराने कानून में यह परामर्श की बात नहीं कही गई है। 70 प्रतिशत रैयतों की अनुमति लेने की बात कही गई है। किसी प्रोजेक्ट के लिए तभी जमीन मिलेगी, जब वहां के 70 प्रतिशत या उससे ज्यादा रैयत जमीन देने के लिए सहमत हों। लेकिन अब चैप्टर 2 खत्म कर होने के बाद अब परामर्श की भी बात नहीं रह जाती है। पहले के मूल कानून में ये सब बात थी। अब उसी को हटा दिया गया है। लोग कह रहे हैं कि यह संशोधन गुजरात के मॉडल पर किया गया है। ऐसी कोई बात नहीं है। गुजरात के कानून में जो संशोधन किया गया है, उसका यहां पर पूरा इस्तेमाल भी नहीं किया गया है। सरकार सिर्फ नाम का गुजरात का संशोधन बोल रही है। सिर्फ कुछ एक शब्द मेल खाते हैं, जबकि सही में ऐसा है नहीं। सरकार ने कैसा संशोधन किया है, यह बात वही जाने। क्योंकि कानून का जैसा मूल नाम है, उसका मकसद इससे पूरा नहीं होता है। इनका कहना है कि आधारभूत संरचना डेवलब करने में बहुत परेशानी हो रही है, बहुत समय लग रहा है।

सरकार ने बहुत चालाकी से कहा है कि इस संशोधन को 1 जनवारी 2014 से हस्ताक्षर होने के बाद से लागू माना जायेगा। ये लोग यह कह रहे हैं कि नोटिफाई होगा। 2017 के संशोधन में यह स्पष्ट है कि जब ये राष्ट्रापति के पास से लौटेगा तो 1 जनवरी 2014 से लागू हो जायेगा। रघुवर सरकार अपने निवेशकों को संरक्षित करने के साथ-साथ पहले की सरकार के निवेशकों को भी लाभ पहुंचाने में लगी है। क्योंकि इस अधिनियम में जो पुराने प्रोजेक्ट लटक गये हैं उसको भी फायदा मिलेगा।

इस संशोधन में चैप्टर 2 और चैप्टर 3 को हटाने के बाद चैप्टर 3 ‘ए’ ला रहे हैं। चैप्टर 3 कृषि योग्य जमीन को बचाने के लिए है। इस कानून को हटाकर 3 ‘ए’ लाया जा रहा है। जिन लोगों ने इस कानून की ड्राफ्टिंग की है, उससे लगता है कि उन्होने कितनी लापरवाही बरती है। चैप्टर 3 ‘ए’ में सरकारी स्कूल, कॉलेज, पंचायत, आंगनबाड़ी सेंटर का जिक्र किया गया है। अभी तक के इतिहास में कभी इन सब के लिए जमीन को लेकर पेरशानी नहीं हुई।

सवाल : कानून के तहत महत्वपूर्ण सामाजिक एवं आर्थिक आधारभूत अवसंरचनात्मक सुविधाओं और व्यापक जनहित में सरकारी योजना के लिए जमीन लेने की बात है इसका क्या अर्थ है?

रश्मि कात्यायन : सरकार को बताना चाहिये कि 2014 के बाद इन सब के लिए जमीन लेने में कहां परेशानी हुई? पुराने स्कूरल को ही सरकार संभाल नहीं पा रही है। सरकारी स्कूल विलय किये जा रहे हैं। हाउसिंग के लिए सरकार घर बनाने के लिए जमीन की बात कही गई है। बरियातू और हरमू में जमीन ली गई। कहा गया था कि आमलोगों के लिए एलआईजी यानी लो इनकम ग्रुप फ्लैट, एमआईजी यानी मिडिल इनकल ग्रुप फ्लैट बनेंगे। लेकिन वहां बड़े लोग, आईएएस और धोनी जैसे सेलिब्रिटी रहते हैं और अब जमीन देने वाले लोग कहां चले गये, उसका पता नहीं। साथ ही सरकार के द्वारा अधिग्रहण कर जमीन निजी पूंजीपतियों के द्वारा अपयोग करना असान होगा।

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