संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

झारखण्ड कैबिनेट का फैसला : अब भरना होगा गैर मजरूआ जमीन का लगान

रांची 4 जुलाई 2018. प्रभात खबर के अनुसार राज्य सरकार ने गैर मजरूआ जमीन की लगान रसीद काटने का फैसला किया है। 3 जुलाई को हुई कैबिनेट की बैठक में इससे संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी गयी। सरकार ने गैर मजरूआ जमीन की जमाबंदी में गड़बड़ी का मामला सामने आने के बाद मई 2016 में आदेश जारी कर लगान रसीद काटने पर पाबंदी लगा दी थी।

सरकार के इस आदेश के बाद राज्य में 2016 से जिनके नाम भी गैर मजरूआ जमीन बंदोबस्त है, उसे संदेहास्पद बंदोबस्ती मानते हुए लगान रसीद काटना बंद कर दिया गया था।

3 जुलाई को कैबिनेट ने बिना संलेख के अन्यान्य में इस मुद्दे पर चर्चा के बाद मई 2016 में लगान रसीद नहीं काटने से संबंधित जारी आदेश रद्द करने का सशर्त फैसला किया। इसके तहत अब केवल वैसी गैर मजरूआ जमीन की लगान रसीद नहीं काटी जा सकेगी, जिस जमीन पर न्यायालय का कोई विपरीत फैसला हो।

दयामनी बरला ने बताया कि 1932 में जो सर्वे सेटेलमेंट हुआ-इस रिकोर्ड के आधार पर जमीन को रैयती जमीन खूंटकटीदार मालिकाना, विलकिंगसन रूल क्षेत्र, गैर मजरूआ आम, गैर मजरूआ खास, परती तथा जंगल-झाड़ी भूंमि वर्गों में बांटा गया। उस समय लोगों की आबादी कम थी। कम परिवार था। 84 साल पहले जमीन को चिन्हित किया गया था-कि ये परती है, जंगल-झाडी भूमिं है।

84 वर्ष में जो भी परती-झारती था, अब वो आबाद हो चूका है। अब उस जमीन पर बढ़ी आबादी खेती-बारी कर रही है।

आगे वो कहती है कि गैर मजरूआ आम भूंमि पर तो गांव के किसानों को पूरा अधिकार है ही, गैर मजरूआ खास जमीन पर भी ग्रामीणों का ही हक है।

आज सरकार विकास के नाम पर लैंड बैंक-बना कर आदिवासी समुदाय के हाथ से उनका जमीन-जंगल छीन कर उद्योपतियों को देने का योजना बना रही हैं-इसे आदिवासी समाज पूरी तरह कमजोर हो जाएगा

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