संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

झारखण्ड : नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द कराने के लिए पदयात्रा; 21-25 अप्रैल 2022

केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति पिछले 28 साल से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज, टूडरमा डैम, व 2017 से पलामू व्याघ्र परियोजना के खिलाफ चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व कर रही है. इसके साथ ही इन परियोजना के प्रभावित इलाकों में मानवाधिकार से सम्बन्धित मामलों, समाजिक मुद्दों, देश व राज्य के ज्वलन्त समस्याओं एवं आंदोलनों पर भी हमारी पैनी नजर है. जिस पर कार्य करते हुए हम प्रभावी क्षेत्र के लोगों के साथ मिलकर आम जनता के सवालों को उठाते एवं अहिंसात्मक आन्दोलन करते रहे हैं.
जैसा की आप सभी को मालूम है कि एकीकृत बिहार के समय में 1954 में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट 1938 की धारा में नेतरहाट पठार के 7 राजस्व ग्राम को तोपाभ्यास के लिए अधिसूचित किया गया था. जिसके तहत चोरमुंडा, , हुसमु, हरमुंडाटोली, नावाटोली, नैना, अराहंस और गुरदारी गाँव में तोपाभ्यास करती आ रही है. इस बीच तत्कालीन बिहार सरकार ने कई अधिसूचना प्रकाशित की होगी. 1991 और 1992 में तत्कालीन बिहार सरकार ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए अधिसुचना जारी की जिसमें उन्होंने अवधि का विस्तार करते हुए इसकी अवधि 1992 से 2002 तक कर दी .इस अधिसूचना के तहत केवल अवधि का ही विस्तार नहीं किया बल्कि क्षेत्र का विस्तार करते हुए 7 गाँव से बढ़ाकर 245 गाँव को भी अधिसूचित किया गया .

People’s Union for Democratic Rights, Delhi, October 1994 की रिपोर्ट से हमें ज्ञात हुआ कि सरकार की मंसा पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्थाई विस्थापन एवं भूमि- अर्जन की योजना को आधार दिया जाना था. तब से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ हमारा आन्दोलन जारी है.22 मार्च 1994 को फायरिंग अभ्यास के लिए आई सेना को बिना अभ्यास के वापस जाने पर मजबूर किया था तब से आज तक सेना नेतरहाट के क्षेत्र में तोपाभ्यास के लिए नहीं आई है. आन्दोलन के साथ ही हमने बात-चीत का रास्ता खुला रखा. हमारे जोरदार विरोध को देखते हुए स्थानीय प्रशासन गुमला और पलामू के पहल पर प्रशासनिक अधिकारी, सेना के अधिकारी व केन्द्रीय जन संघर्ष समिति के साथ तीन बार वार्ता हुई. इस वार्ता के पूर्व समिति ने नेतरहाट पठार में 1964 से 1994 (30 वर्षों) तक फायरिंग अभ्यास के दौरान के अनुभवों को जानने के लिए सर्वे कराया. सर्वे से जो तथ्य सामने आए वो दिल दहलाने वाले थे. जो निम्न हैं-
• सैनिको के सामूहिक बलात्कार से मृत महिलाओं की संख्या – 2
• सैनिकों द्वारा महिलाओं का बलात्कार – 28
• तोपाभ्यास के दौरान गोला विस्फोट से मृत लोगों की संख्या – 30
• गोला विस्फोट से अपंग लोगों की संख्या – 3

वार्ता के दौरान जन संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों ने कहा कि समिति किसी भी तरह के फायरिंग अभ्यास को पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का ही रूप मानती है.अत: समिति बिहार सरकार के द्वारा पायलट प्रोजेक्ट को विधिवत अधिसूचना प्रकाशित कर रद्द करने की मांग करती है. इसके बाद विगत 30 वर्षों में गोलाबारी अभ्यास के दौरान पीड़ित भुक्त-भोगियों ने प्रशासन और सेना अधिकारियों के समक्ष अपनी मर्मस्पर्शी व्यथा कह सुनाई. उनकी आपबीती सुन एवं देख आयुक्त महोदय ने कहा की समस्या गंभीर है. सेना फायरिंग अभ्यास का नैतिक आधार खो चुकी है. इसका निराकरण स्थानीय प्रशासन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है, इस लिए प्रशासन सरकार के पास इसकी अनुसंसा करेगी.

जोरदार विरोध व प्रशासनिक अधिकारियों के आग्रह पर समिति ने सोचा की नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अवधि जो मई 2002 तक है समाप्त हो जाएगी. परन्तु ऐसा सोचना हमारे लिए घातक साबित हुआ 1991 व 1992 की अधिसूचना के समाप्त होने के पूर्व ही तत्कालीन बिहार सरकार ने 1999 में अधिसूचना जारी कर 1991 -1992 की अधिसूचना का अवधि विस्तार किया है 1999 की अधिसूचना के आधार पर 11 मई 2022 तक प्रभावित है. आज भी हमें डर है कि कहीं राज्य सरकार अवधि का विस्तार न कर दे. क्योंकि अभी तक नेतरहाट फील्ड फायरिग रेंज को रद्द होने की अधिसूचना राज्य सरकार द्वारा जारी नहीं की गई है.

11 मई 2022 को 1999 की अधिसूचना की अवधि समाप्त होने वाली है. हमने इस संदर्भ में झारखण्ड सरकार के गृह मंत्रालय को सुचना का अधिकार अधिनियम के माध्यम से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की वास्तविक स्तिथि व आगे के अवधि विस्तार को जानने की कोशिश की. इसके लिए समिति ने प्रभावित इलाके के हर गाँव से 10-10 सुचना अधिकार के तहत सुचना मांगने का प्रयास किया. परन्तु गृह मंत्रलाय हमें सूचना देने के बजाय इधर उधर घुमाती रही. वहाँ से निराश होने के बाद हमने वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय , झारखण्ड सरकार से इस मामले को जानने के लिए सुचना का अधिकार अधिनियम से कोशिश की परन्तु यहाँ भी निराशा ही लगी. वन, पर्यावरण मंत्रालय से सुचना मांगने के पीछे हमारा मानना था कि पलामू व्याघ्र परियोजना के तहत नेतरहाट का पठार क्षेत्र इको सेंसिटिव जॉन के अंतर्गत आता है. हमने माननीय मंत्रालय से स्पष्ट तौर पर जानना चाहा कि क्या इको सेंसिटिव जॉन में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट 1938 लागु हो सकती है या नहीं.

सरकार द्वारा जब हमें कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला तो हमने माननीय विधायकों को इस संदर्भ में झारखण्ड विधान सभा में सवाल उठाने का आग्रह किया. माननीय विधायक श्री विनोद कुमार सिंह (बगोदर विधानसभा ) ने हमारी बातों को विधानसभा के पटल में रखा परन्तु यहाँ भी सरकार ने नेतरहार फील्ड फायरिंग रेंज को रद्द करने व अवधि विस्तार पर रोक लगाने के संदर्भ में कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया.

चूँकि यह इलाका पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है और यहाँ पेसा एक्ट 1994 लागु है. अत:केन्द्रीय समिति ने प्रभावित क्षेत्र के ग्रामप्रधानो से आग्रह किया कि आप ग्राम सभा का आयोजन कर यह निर्णय लें कि आप नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए गाँव के सीमा के अन्दर की जमीन देना चाहते हैं या नहीं. हमारे आग्रह पर प्रभावित क्षेत्र की ग्रामसभाओं ने जो निर्णय दिया है उसकी कॉपी लेकर हम 21 अप्रैल से 25 अप्रैल 2022 तक पदयात्रा करते हुए राज्यपाल के पास जायेगें और ग्रामसभा के निर्णय की कॉपी देंगे.

निवेदक,

केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति , लातेहार-गुमला

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