संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

तूतीकोरिन पुलिस फायरिंग के साक्ष्यों ने साबित किया कि यह इरादतन की गई हत्याएं थी : जांच दल की रिपोर्ट

हाइकोर्ट के दो अवकाश प्राप्त जज, दो रिटायर्ड आइएएस अफसर, तीन अवकाश प्राप्त आइपीएस अफसर और वरिष्ठ अधिवक्ताओं, पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक उच्चसस्तरीय टीम तमिलनाडु के तूतीकोरिन में 22 मई 2018 को हुई गोलीबारी की नृशंस घटना की जांच करने जून के पहले सप्ताह में गई थी. 15 जुलाई 2018 को उसी टीम की सम्पूर्ण जांच रिपोर्ट का लोकार्पण चेन्नई के लोयोला परिसर में  किया गया. पेश है जाँच दल की रिपोर्ट एवं ‘कोआर्डिनेटिंग कमेटी फॉर पीपुल्‍स इंक्‍वेस्‍ट इनटु थूतुकुडी पुलिस फायरिंग’ और ‘एंटी-स्टरलाईट पीपल्स मूवमेंट’ की प्रेस विज्ञप्ति;

अंग्रेजी में प्रेस विज्ञप्ति यहाँ पढ़े – Press Release (English)

तमिलनाडु, चेन्नई, जुलाई 15, 2018. यह नागरिकों द्वारा तैयार एक तथ्यात्मक रपट है, उन घटनाओं की जिनके फलस्वरूप थूठुकुडी (Thoothukudi) में15 निर्दोष नागरिकों की पुलिस द्वारा हत्या की गई; वह दिन जब थूठुकुडी जिला प्रशासन ने पुलिस को तांडव-नृत्य करने की खुली छूट दी;और वह दिन जब स्टरलाईट कारखाने में व्याप्त १००-दिवसीय लम्बे विरोध प्रदर्शन, और उसी दिन एक विशाल रैली के आयोजन के सन्दर्भ में अपने कर्तव्य को निभाने में प्रशासन ने पूरी तौर पर गैर-ज़िम्मेदारी का परिचय दिया.

“जिस दिन टूटीकोरिन जल उठा” (“The Day Tuticorin Burned”)नामक रपट उन जन-गवाहियों, चश्मदीद गवाहों के बयानों, दस्तावेज़ों और रिकार्ड्स के गहन विश्लेषण पर आधारित है जो सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हैं; इस रपट में यह स्थापित किया गया है कि उन परिस्थितियों की पूरी प्रशासनिक और अपराधिक जांच होनी ज़रूरी है जिनके फलस्वरूप नागरिकों की हत्याएं हुईं, उन्हें बेवजह परेशानी हुई, उन पर यातना देकर उन्हें चोटें पहुंचाई गईं. यह जांच इसलिए भी ज़रूरी है ताकि इस जघन्य काण्ड की ज़िम्मेदारी तय की जा सके, और भारतीय संविधान में निहित मौलिक प्रावधानों के घोर उल्लंघन के चलते तमाम लोग जिनकी म्रत्यु हो गई या जिन्हें किसी भी तरह की पीढ़ा और वेदना पहुंची, उन्हें उचित मुआवज़ा मिले सके.

इस रपट का सार्वजानिक किया जाना एक स्वतंत्र जन-जांच पडताल (Independent People’s Inquest) की प्रक्रिया का अंतिम सिरा है जो तमिलनाडु के थूठुकुडी जिले में जून 2-3, 2018 को “को-आरडीनेटिंग कमेटी फॉर पीपल्स इन्क़ुएस्त इनटू थूठुकुडी पुलिस फायरिंग & एंटी-स्तेर्लिते पोपल्स मूवमेंट” के बैनर (‘Coordinating Committee for People’s Inquest into Thoothikudi Police Firing & Anti-Sterlite People’s Movement’) तले आयोजित की गयी थी.

स्वतंत्र जन-जांच पडतालमें कोई 217लोगों के बयान दर्ज किये गए, जो पुलिस गोली-चालन में मौत, यातना के कारण मौत, गैर-कानूनी हिरासत और गिरफ्तारियों, पुलिस द्वारा आधी-रात को घरों पर दस्तक देना, अस्पतालों में भी हिरासत में लेना, पोस्ट-मार्टम में खामियां, आदि से सम्बंधित थे. ज़िला प्रशासन और पुलिस की कार्य-शैली पर इस जन-पंचाट के दौरान तमाम कचोटने वाले सवाल उठे, जो मई 22 के पहले, मई 22 को, और आने वाले दिनों से सम्बंधित थे. इस जांच के दौरान तमाम अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे भी उजागर हुए जो मई 22 के गोली-चालन से जुड़े सवालों की के दायरे के बाहर के थे, जिन्हें पूर्व-अनुमति से विधिवत मॉनिटर किया गया था.

स्वतंत्र जन-जांच पडतालके आदेशपत्र में यह भी शामिल था कि वह उन घटनाओं की भी विवेचना करे जो थूठुकुडी में 100 दिनों से चल रहे शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के कारण उपजीं, जो संघर्ष स्टरलाईट कॉपर (Sterlite Copper)के प्रस्तावित विस्तार के परिपेक्ष में चलाया जा रहा था, और 22 मई, 2018 को कलेक्टरेट तक आयोजित रैली, मनमाने तरीके से लोगों को हिरासत में लेने, यातना के प्रकरणों, और 22 मई और उसके बाद के दिनों में पुलिस द्वारा भड़काऊ कार्यवाई, आदि के फलस्वरूप घठित हुईं. इसके पहले के 99 दिनों में पूरे थूठुकुडी इलाके के लोगों ने कारखाने के विस्तार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, और ज़िलाध्गीश श्री एन.वन्कटेश, आई.ए.एस. को इस मुद्दे पर याचिकाएं भी सौंपी. ज़िला प्रशासन से किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया न मिलने पर, उन्होंने तय किया कि वे इस विरोध के सौंवे दिन (100 दिन) कलेक्टरेट तक एक रैली निकालेंगे. तमिलनाडु सरकार के अनुसार, इस रैली के दौरान पुलिस गोली चालन में 11 लोगों की मौत हुई.

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144के आदेश जारी करने और लागू किये जाने में जानबूझकर की गई तमाम खामियों को जन-पंचाट की टीम ने उजागर किया है. रपट में स्पष्ट हुआ है कि 22 मई के पहले से ही कोई साल-भर से इस रैली की तैय्यारी की, इसकी सघनता और इरादे की प्रशासन को पूरी-पूरी जानकारी थी, और यह भी पूरी जानकारी थी कि इसमें बड़ी संख्या में परिवार, सामान्य पुरुष, महिलाएं, बच्चे और वृध्द जन शामिल होंगे. लेकिन फिर भी रैली में भाग लेने वालों की सुरक्षा की व्यवस्था को जानबूझकर नज़रंदाज़ किया गया. प्रशासन ने कोई भी ऐसा कारगर कदम नहीं उठाया जिससे सुनिश्चित हो कि लोगों को पता चले कि आखिरी समय में धारा 144 लागू करने के आदेश जारी किये गए हैं. प्रांगण से मई 22 को जानबूझकर अनुपस्थित होकर पूरे प्रशासन ने अपने कर्तव्य को निभाने में एक डरपोक तरीके से कोताही बरती, और पूरा-का-पूरा नगरीय अधिकार और शक्ति पुलिस को सौंप दिया. जन सेवकों द्वारा अपनाया गया यह हथकंडा अपने कर्त्तव्य को निभाने में कोताही बरतना जैसा ही है, और उन मौतों के लिए सीधे-सीधे ज़िम्मेदार, जो 22 मई को हुईं.

पुलिस ने न तो रैली निकालने वालों की कोई मदद की, और न ही शानित्पूर्ण जुलूस निकालने वालों के साथ रहकर कोई व्यवस्था की, ताकि वे व्यवस्थित तरीके से बिना किसी हानि व् गतिरोध के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के अपने मौलिक अधिकार का उपयोग कर सकें. पुलिस ने भीड़ को तित्तर-बित्तर करने के माननीय कानूनी मापदंडों और प्रक्रिया का पालन नहीं किया, और कई अलग-अलग जगहों पर और अलग-अलग समय पर जुलूस निकालने वालों पर अत्याधिक बल प्रयोग किया, वह भी भीड़ द्वारा उकसाने वाली गतिविधि के बिना. चाश्म्दीद गवाहों के बेबाक बयानों के अनुसार भीड़ को तित्तर-बित्तर करने के उद्देश्य से न होकर पुलिस हिंसा उन्हें उकसाने, चोट पहुंचाने और उनमें डर फैलाने की नीयत से की गई थी.

शार्पशूटर्स/छिप कर गोली दागने वाले (snipers)की मौजूदगी जिन्हें रणनीतिगत तरीके से भीड़ पर निशाना साधने के लिए छतों पर तैनात किया गया था, जो आम धारणा के अनुसार सादी वर्दी में पुलिस कर्मी ही थे, या तो इस बेमिसाल पूर्व-नियोजित पुलिस (योजना का सबूत है कि यह पूरी घटना मौत के घाट उतारने और पंगु बनाने के इरादे से ही की गयी थी, या फिर पुलिस और प्रशासन की तरफ से अपने कर्तव्य का घोर उल्लंघन (dereliction) है, ताकि तोड़-फोड़ करने वालों (disrupters)को खुली छूट देकर भीड़ को उनका शिकार बनने दिया जाए. हत्या की जांच की मांग के लिए ऐसे तमाम कारण हैं, जो तत्काल प्रारंभ की जानी चाहिए. समुदायों का विशवास पुन: जीतने के लिए सरकार और पुलिस प्रशासन को इन आरोपों की स्वतंत्र और सार्वजनिक जांच करानी चाहिए. मई २२ और उसके बाद के दिनों में 14 मौतों, महिलाओं और बच्चों पर बहुल चोटों और हमलों के चलते उच्च अधिकारियों की भूमिका की, ख़ास कर रैली की तैयारी में, रैली के दौरान और उसके बाद पुलिस की तमाम गलितियों और गैर-कानूनी कृत्यों के सम्बन्ध में प्रशासनिक जांच की जानी चाहिए.

इस बात के प्रयाप्त और ढोस सबूत हैं कि मई 22 के तत्काल बाद, रैली के सन्दर्भ में बिना किसी वैध कानूनन अधिकार के पुलिस अपने बल का दुरूपयोग तलाशी लेने, मौके पर अन्याय्संगत गिरफ्तारियां, और लोगों को बेवजह हिरासत में लेना जो वैध कारणों के तहत ही उनकी गिरफ्तारी, उनका प्रतिनिधत्व करने वकील की सुविधा, और जल्द-से-जल्द उन्हें न्यायायिक दंडाधिकारी के समक्ष पेश करने जैसे मौलिक अधिकारों से उन्हें वंचित रखने जैसा है. ऐसे गैर-कानूनी कृत्यों को बार-बार दोहराए जाने के व्यापक आरोप भारतीय दंड संहिता के तहत अधिकार के दुरूपयोग और गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है, और न्याय पाने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने के बराबर है, क्योंकि ऐसा करना पीड़ित को बिना डर या तरफदारी के न्याय पाने से वंचित करता है. “खुली ऍफ़.आई.आर.” का इस्तमाल अपने आप में इस बात का सबूत है कि लोगों को डराने, धमकाने और जाल में फंसाने के लिए मनमर्जी से इसका उपयोग किया जाता है, और पीड़ितों, चश्मदीद गवाहों और चिंतित नागरिकों को रोका जा सके कि वे इन समान और सम्बन्धित घटनाओं के बारे में पुलिस के खिलाफ शिकायत न दर्ज कर सकें.

बिना किसी शक और शुबाह के अब यह स्थापित हो चुका है कि स्टरलाईट (Sterlite) एक गंभीर अतिक्रामक (violator)है, जन-जीवन पर जिसके परिणाम घातक हैं, तो फिर ऐसी कंपनी को संचालित रहने के लिए क्यों लाइसेंस दिया जाये? यही तर्क डाव (DOW) कंपनी पर लागू किया गया था जब उसने यू. सी.सी. (UCC) को अधिग्रहित कर भारत में व्यापार करना चाहा था. इसके अलावा, डाव कंपनी, एक कानून के भगोड़े को भी पनाह दे रही थी, जो कानून की अदालत द्वारा “भगोड़ा” घोषित किया गया था, जो अपने आप में एक अपराध है. बुनियादी सवाल तब भी यही था और आज भी यही है – उल्लंघनकर्ताओं को क्यों कारखाना संचालित करने के लिए लाइसेंस दिया जाए, उनके कारखाने के विस्तार की बात तो करने की ही नहीं है?

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श्री मैथ्यू : 88601-10520 mj@pwtn.org
Report is available at – https://peoplesinquest.wordpress.com/reports/

 15 July 2018

Vol I — Final Report of People’s Inquest into Thoothukudi Police Firings

Vol II — First Information Reports

Vol III — Statements from Victims, Families of Deceased, Witnesses, Officials

Vol IV — News Clippings

Vol V — Special News Articles & Sample of Writ PetitionsThe Summer that Shook Thoothukudi — A Brief Look at the People’s Inquest 

June 2018

Interim Report of the People’s Inquest into Thoothukudi Police Firing

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