संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मध्य प्रदेश : नर्मदा घाटी विस्थापितों का गुजरात में सरदार पटेल के पुतले का विरोध कर रहे 72 गांवों के आदिवासियों के समर्थन में प्रदर्शन

सरदार पटेल जंयजी मनानी है तो किसान-खेतीहरों को कर्जमुक्त करे और उपज का सही दाम दे सरकार।

गुजरात के आदिवासीयों को वंचित विस्थापित रखकर चीन और भारत के ठेकेदार-कंपनियों को लाभ देना अन्याय है।

गुजरात के अहिंसक आंदोलन के 90 कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी कायरता की निशानी है, राष्ट्रीय एकता की नहीं।

सरदार पटेल के वारिस हो तो जातपात छोडो, धर्मभेद तोडो, सांप्रदायिक हिंसा रोक दो।

मध्य प्रदेश- धार/बड़वानी/खरगोन 31 अक्टूबर 2018। र्मदा घाटी के हजारों लोग सरदार पटेल जयंती के रोज राष्ट्रीय एकता के नाम पर हो रहे आदिवासी-किसानों के साथ अन्याय का निषेध कर रहे है। एक और गुजरात के आदिवासीयों ने अहिसंक सत्याग्रह के द्वारा हजारों परिवारों के चूल्हे बंद रखकर उनके जल, जंगल, जमीन छीनने की खिलाफत की है। सालों से थोपे गये विस्थापन पर और नर्मदा को दूषित और बरबाद करते हुए, घाटी के तीर्थ श्रृगार करते हुए, पर्यटन योजना का शृंगार और उसमें 72 अन्य गांवों के नियोजित विस्थापन पर आदिवासीयों ने उठाये सवाल गंभीर और सत्यवादी है, मोदी-रूपाणी शासन से हो रही आदिवासी ग्रामसभाओं की अवमानना की पोलखोल करते हैं। सरदार सरोवर और अब पुतला, महान किसान नेता सरदार पटेल जी के नाम पर निर्मित करवाने वाले शासनकर्ताओं ने न कभी नर्मदा नदी के जीवन और भविष्य का सोचा, न कभी विस्थापितों की कदर की। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के 33 सालों से संघर्ष करते हुए ही अपने अधिकार पाते रहे आदिवासी-किसान, मजूदर, मछुआरे, जात-पात-धर्म-पंथ-प्रांत और लिंगक भेद ना मानते सही अर्थ से एकता का परिचय देते आये है। वे ही सच्चा समान करते आये है, सरदार पटेल जी का और आज भी कर रहे है।

आज, धार जिले के चिखल्दा गांव में, बडवानी जिले के बगुद में और खरगोन जिले के खलघाट में, नदी किनारे सैकडों लोग, बहन भाई नर्मदा किनारे एक होकर गुजरात के संघर्ष को साथ और शासनकर्ताओं के धिक्कार की बात जाहीर करंेगे।

सरदार पटेल भारत के पहले गृहमंत्री ही नहीं, भारत भर अंगेज सरकार के अन्यायपूर्ण टैक्स के खिलाफ एक जवरदस्त अहिंसक आंदोलन खडा करने वाले और छीनी गयी जमीनों सत्याग्रही किसानों को वापस दिलाने वाले नेता थे। उनकी हैसियत ऐसी भी कि उन्होने कई सारे राज्य संस्थानों को आजाद भारत में स्वेच्छा से संमिलित करवाया और ‘‘ लोह पुरूष ‘‘ होते हुए जिन्होने विरोध किया, उन्हें संपत्ति से वंचित करवाया। संाप्रदायिकता की खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना, भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद हुए हिंसक दंगों में सभी धर्म-प्रातं के लोगों को मनवाना इत्यादि में अपना लोहा बताया।

आज देश में किसानों की लूट ऐसी मची है कि उपज का सही (लागत के डेढ गुना) दाम देने के बदले भावांतर और फसल बीमा से करोडों, किसानों के करोडो रू. छीने जा रहे हैं। अब फिर म.प्र.जैसे राज्य में, चुनाव के मुददे नजर एमएसपी बढाने की और जनवरी 2019 में याने चुनाव के बाद भावांतर देने की घोषाएं हो रही है। हम किसान (खेत, मजदूर, मछुआरे, वनोपज पर जीने वाले, पशुपालक सभी) हमारे प्रकृति और मेहनत का सही दाम, स्वामीनाथन आयोग के सिफारिश के अनुसार मांग रहे है तो मात्र थोडा सा लाली पाॅप केन्द्र सरकार दिखा चुकी है, अमल नहीं।

भावंतर के नाम पर आज भी बडवानी मण्डी में मक्का 1200 रू तक बेची जा रही है। आपदाग्रस्तों को बीमा से कोई लाभ नहीं। सरदार पटेल के वारिस हो तो किसानों को ये लाभ दो, मात्र पुतले खडे ना करो, यही हमारा कहना है।

नर्मदा के भर बीच, आदिवासीयों का श्रध्दास्थान रही वराता बावा टेकडी पर 182 मी. का पुतला खडा करना एक बात है। लेकिन पुतले के लिए सरदार सरोवर निगम से करोडों रू खर्च नेवालोंन सार्वजनिक उद्योगों से लिया 200 करोडों का चंदा देश के सीएजी (आॅडिटर) ने अवैध घोषित किया है। एक और विस्थापितों के पुनर्वास के लिए पैसा नहीं और दूसरी और पुतले से जोडकर उपभेगवादी पर्यटन योजना गलत जमीन पर, आदिवासीयों पर, उनके प्राकृतिक संसाधनों पर संक्रात लायी जा रही है। यह कौन सा न्याय?

हम नर्मदा घाटी के लोग जानते हैं कि गुजरात के किसानों को, कच्छ के सूखाग्रस्तों को कम से कम लाभ दिया जा रहा है, जबकि अधिकांश पानी गुजरात की कंपनीयों को सरदार सरोवर से और मध्यप्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों के लिए नर्मदा लिंक परियोजनाओ से दिया जा रहा है। नर्मदा से गंभीर, क्षिप्रा, पार्वती, कालीसिंध, मही और चंबल नदी भी कहां से भर सकती है शासन?

हम जानते हैं कि नर्मदा और पूरी घाटी के निवासीयों के साथ खिलवाड हो रही है। नर्मदा सूखा और कभी बाढ के चक्र में फंसायी गयी है। क्या अभी भी नर्मदा के नाम पर चुनाव लडे जाएगे? हम चुनावी राज चलाने नहीं देगे। घाटी और नदी की बरबादी और राष्ट्रीय एकता की बुनियाद पर आदिवासीयों सहित जन जन का अधिकार और जीवन सुरक्षित रखेंगे। आज चिखल्दा, बगुद, खलघाट और महाराष्ट्र के सरदार सरोवर बांध के करीब के पहले गांव मणिबेली में यही कहा और संकल्प लिया गया।

वाहिद मंसूरी, भागीरथ धगनर, कालूराम यादव, भागीराम भाई, मुकेश भगोरिया, नूरजी वसावे, पवन यादव, सौरव राजपूत, राहुल यादव, मेधा पाटकर

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