संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मोदी ने दी राज्यों को भूमि लुटाने की खुली छुट : भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के साथ क्रूर मजाक

मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर विफल होने के बाद अब अलग -अलग कानूनी दावपेंच से जमीन हथियाने और उद्योगपतियों को औने पौने दामों पर देने की कोशिश में लगी हुई है।  कार्पोरेट के लिए अब भूमि की लूट राज्य अलग-अलग कानूनों से कर रहे। पेश है जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय द्वारा तैयार कुछ तथ्य और उनके जन विरोधी दावपेंच;


1. राज्य सरकारें बना रहे अपने दमनकारी जन विरोधी कानून, गुजरात और राजस्थान सबसे आगे। भूमि विधेयक पारित ना कर पाने की हताशा में गुजरात और राजस्थान सरकार ने बना डाले अपने कानून जिससे राज्यों में पूंजीपतियों के लिए भूमि अधिग्रहण का रास्ता बिलकुल सरकारी तरीके से आसान कर दिया गया है । 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून को धता बताते हुए गुजरात सरकार ने अपने कानून में औद्योगिक गलियारों और राजमार्गों के दोनों तरफ एक एक किलोमीटर तक के जमीन अधिग्रहण को ख़ासा महत्व देते हुए लोगों की सहमति, सामाजिक समाघात निर्धारण और पुनर्व्यस्थापन और पुनर्वास के लोगों के हितकारी प्रावधानों को बेअसर कर दिया और इसके अलावा कई ऐसे जन विरोधी बदलाव किये जो भूमि अधिग्रहण विधेयक से मेल रखते है । राजमार्गों के दोनों तरफ एक एक किलोमीटर जमीन हथियाने के बाद लोगों का पुनर्वास ना करते हुए उसकी जगह में पैसों का खेल कर रहे है । राज्य को उद्योगों के लिए प्रगतिशील बता कर, यहाँ के किसानों, मछुआरों, आदिवासियों के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए जमीन हथियाने की पूरी साजिश कर रही है ।

रही बात राजस्थान सरकार की तो मोदी सरकार के विनाशकारी गुजरात मॉडल का अनुशरण करते हुए इन्होने भी स्पेशल इन्वेस्टमेंट रीजन एक्ट और लैंड पूलिंग स्कीम विधानसभा में पारित कर दिया । इससे पहले राजस्थान ने ही पहल करते हुए भूमि विधेयक के जैसा राजस्थान के लिए अलग से भूमि अधिग्रहण कानून का खाका तैयार किया था । आज जब गुजरात के धोलेरा और अन्य जगहों पर लोग गुजरात के SIR Act से परेशान, अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्षरत है वहां ऐसे दमनकारी कानूनों का दुसरे राज्यों में आना विनाशकारी होगा । राजस्थान के SIR Act में पंचायतों और म्युनिसिपल कारपोरेशन के लोकतांत्रिक अधिकार को नकारते हुए रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाने का प्रावधान है जो वहां के औद्योगिक विकास के लिए कार्यरत होगी और इसके साथ जो भी नगरीय सुविधा दी जायेगी उसके लिए लोगों से ज्यादा पैसे वसूले जायेंगे । देश में शहरीकरण का इतिहास बताता है कि ऐसे परियोजनाओं से फायदा कभी भी गरीबों का नहीं हुआ बल्कि उनके शोषण का तरीका बन कर रह गया है । मूलभूत सुविधायें आज भी शहरों में गरीबों के लिए एक सपना ही है । SIR Act के अंतर्गत जबरन भूमि अधिग्रहण के लिए भूमि संग्रहीकरण (लैंड पूलिंग) स्कीम लेकर आयी है राजस्थान सरकार । सरकार ने लोगों को बहकाने और उसे विकास के भ्रमजाल में फ़साने के लिए ऐसी स्कीम का इजाद किया है । इसका जीवंत उदाहरण आंध्र प्रदेश की प्रस्तावित राजधानी अमरावती और गुजरात की धोलेरा स्मार्ट सिटी है जिसमे लैंड पूलिंग के नाम पर लाखों छोटे, मंझोले और भूमिहीन किसान, खेत मजदूर और आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है । धोलेरा स्मार्ट सिटी परियोजना के खिलाफ गाँव वालों ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है जिसमे अदालत के फैसले अभी तक गाँव वालों के पक्ष में रहे है ।

2. राज्य स्तरीय भूमि अधिग्रहण कानून के अंतर्गत नियम: केंद्र सरकार की अनदेखी, राज्य सरकारों की मनमानी ।

केंद्रीय भूमि अधिग्रहण कानून के अंतर्गत ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कई आदेश और अधिसूचनाएं जारी की है, जिसका विश्लेषण विभिन्न राज्यों द्वारा बनाये गए नियमों के अध्ययन के साथ निम्नलिखित है।

i. भूमि वापस करने की नीति
केंद्रीय भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के अंतर्गत जमीन के मालिकों या उसके उत्तराधिकारी को नहीं उपयोग में लायी गई भूमि वापस की जाती है और इसके साथ राज्यों को बिना दावें वाले जमीन को लैंड बैंक में सम्मलित करने का अधिकार दिया हुआ है। लेकिन राज्यों के नए नियम में कुछ राज्यों जैसे झारखंड, कर्नाटक, ओडिशा, सिक्किम और तेलंगाना ने बिना किसी जरुरत के जमीन वापस लेने के नियमों को बहुत पेचीदा बना दिया है। इससे भूमि के सीधे लैंड बैंक में चले जाने का रास्ता साफ़ हो गया है। लैंड बैंक बनाने के पीछे जो भावना भूमिहीनों को भूमि देने की थी वो अब बदल कर उद्योगों और निजी क्षेत्र के खिलाडियों को भूमि हस्तांतरण के लिए रह गया है ।

ii. सिंचित बहुफसली कृषि भूमि का अधिग्रहण अन्य उपयोग के लिए
केंद्रीय भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में सिंचित बहुफसली भूमि के ‘ना अधिग्रहण’ के लिए साफ़ तौर पर प्राथमिकता दी है और इसके बाद भी केंद्रीय कानून में प्रद्दत अधिकारों का उपयोग करते हुए किसी जिले में 5 वर्षों के दौरान कुल मिलाकर सभी परियोजनाओं के लिए अधिगृहित की जाने वाली सिंचित बहुफसली भूमि का क्षेत्र 5 वर्षों के संगत ब्लॉक के लिए निर्धारित कुछ सिंचित बहुफसली भूमि के 1 प्रतिशत से अधिक नहीं करने और इसके साथ किसी एक वर्ष अधिगृहित की जाने वाली भूमि 5 वर्षों के ब्लॉक के लिए निर्धारित सीमा के 30 प्रतिशत से अधिक नहीं होने का प्रावधान प्रसारित किया है । इसके साथ किसी जिले में 5 वर्षों के दौरान कुल मिलकर सभी परियोजनाओं के लिए अधिगृहित के जाने वाली कृषि क्षेत्र का भूमि अधिग्रहण 5 वर्षों के संगत ब्लॉक के लिए निर्धारित उस जिले में कुल बोये कृषि क्षेत्र के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा और इसके साथ किसी एक वर्ष अधिगृहित की जाने वाली भूमि 5 वर्षों के ब्लॉक के लिए निर्धारित सीमा के 30 प्रतिशत से अधिक करने देने के लिए स्पष्ट अधिसूचना जारी की है । लेकिन ओडिशा और असम जैसे राज्यों ने ऐसे भूमि का अधिग्रहण भी सरल बनाने के लिए दुसरे नियम इसके साथ बनाये है। जिसमे कृषि योग्य भूमि के बदले बराबर क्षेत्र की बंजर भूमि को विकसित करने के लिए खरीद कर कृषि विभाग को देना होगा या उसके लिए समतुल्य पैसे देने होंगे। वही पर झारखंड, कर्नाटक, केरल और तेलंगाना ने अधिग्रहण के लिए अधिकतम कृषि योग्य भूमि का निर्धारण किया हुआ है। झारखंड ने यह कुल सिंचित बहुफसली भूमि का 2% रखा है वहीँ तेलंगाना ने वर्तमान कृषि योग्य भूमि का 15% रखा है। गुजरात जैसे राज्यों ने ऐसे नियमों को कमजोर करके कृषि योग्य भूमि को दुसरे उपयोग के लिए खोल दिया है।

iii. मुआवजा और विस्थापितों का पुनर्स्थापन और पुनर्वास 
केंद्रीय भूमि अधिग्रहण कानून 2013 सिर्फ भूमि अधिग्रहण कानून ना होकर इससे आगे बढ़ते हुए न्यायोचित और पारदर्शी मुआवजा, पुनर्स्थापन और पुनर्वास को भी मद्देनजर रखा गया था। लेकिन इसी बीच राजस्थान के भूमि अधिग्रहण बिल से पुनर्स्थापन और पुनर्वास को दरकिनार करते हुए उसके लिए भी आर्थिक मुआवजा देने का प्रावधान बनाया हुआ है। अन्य राज्यों ने भी अपने लिए अलग भूमि अधिग्रहण कानून बनाने और ऐसे जन विरोधी नियमों को लाने के लिए दिलचस्पी दिखाई है। केंद्रीय कानून में वादा के अनुसार मिलने वाले चार गुना मुआवजा को भी दबा कर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों ने शहरी और ग्रामीण इलाकों के लिए एक गुणक (दोगुना मुआवजा) रखा है। सिर्फ असम, कर्नाटक और त्रिपुरा ने अधिकतम गुणक रखा है जिससे ग्रामीण इलाकों में होने वाले अधिग्रहण में जमीन की कीमत का चार गुना मुआवजा मिल सकता है।


iv. स्थानीय संस्थान जैसे ग्राम सभा की भूमिका
जब केंद्रीय कानून 2013 का बना था तब स्थानीय संस्थाओं को सशक्त करना ध्यान में रखा गया था। कई राज्यों ने इस अधिकार को कमजोर करने की कोशिश की है। कर्नाटक ने इसके अधिकारों को सिर्फ अनुसूचित क्षेत्रों में समेट कर रख दिया है। मध्य प्रदेश ने भी आश्चर्यजनक रूप से जिलाधिकारी को SIA रिपोर्ट को जांचने के लिए गठित की जाने वाली टीम के सदस्यों के निर्धारण के लिए अधिकार दे दिया है। इसमें ग्राम सभा से मनोनीत होने वाले एक सदस्य के चुनाव का अधिकार भी जिलाधिकारी को ही दे दिया गया है। जिससे प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाले लोगों की आवाज पूरी तरह से दब जायेगी।

3. लोगों को बचाने वाले सभी नियमों से वंचित करते हुए निजी तोल मोल का प्रावधान
लोगों की भूमि को कॉर्पोरेट के लिए सरल रूप से उपलब्ध कराने के लिए निजी तोल मोल पर जहाँ केंद्रीय सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर शहरी क्षेत्र के लिए 20 हेक्टेयर और ग्रामीण क्षेत्र के लिए 40 हेक्टेयर रखा है वहीँ मोदी सरकार की राज्यों को दी जा रही खुली छूट का फायदा उठाते हुए अलग अलग राज्यों में इसकी अधिकतम सीमा काफी ज्यादा रखी गई है जिसमे पुनर्स्थापन और पुनर्वास के कानून लागू नहीं होंगे। इसके लिए राज्यों को नियम बनाने का प्रावधान केंद्रीय कानून के भाग 2(3) और विशेष रूप से भाग 46 में दिया गया है। आंध्र प्रदेश, झारखंड, बिहार और तेलंगाना जैसे राज्यों ने इसकी सीमा 800 से लेकर 2100 हेक्टेयर तक रखी है। वहीँ त्रिपुरा और छत्तीसगढ़ ने इसकी सीमा बहुत ही कम जो कि 01 से 04 हेक्टेयर के बीच रखी है। फिर भी इसको लगातार ध्यान में रखते हुए इसकी जांच करती रहनी होगी क्यूंकि कई जगह कानूनों को ताक पर रखते हुए भूमि का निजी क्रय हो सकता है ।

4. चौथी सूची के 13 कानून सम्मिलित हुए केंद्रीय भूमि अधिग्रहण कानून में, पुनर्व्यस्थापन और पुनर्वास का लाभ मिलने के आसार ।

भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के चौथे सूची में मौजूद सभी 13 केंद्रीय कानून के तहत होने वाले भूमि अधिग्रहण में मुआवजा, पुनर्व्यस्थापन और पुनर्वास के लिए 2013 के कानून के प्रावधानों को लागू किया जा चुका है । इसके अनुपालन पर भी नजर रखने और इसे अंतर्गत सभी परियोजनाओं के लिए सहमति का प्रावधान के लिए संघर्ष करना जरुरी है ।

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