संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

कोयला खदान में जल भराव के कारण हुई थी 375 लोगों की जल समाधि, दोषियों को 36 साल बाद दी गयी सजा, वह भी एक साल की

एक लोकतांत्रिक देश में जहां पर दिल्ली जैसे शहर में 12 रुपये बिजली बिल का बकाया होने पर काली सूची में डाल दिया जाता है वहीं पर 36 साल पहले 375 मजदूरों को जल समाधि दिलाने वालों को झारखण्ड की एक निचली अदालत में मात्र एक साल की सजा दी जाती है वह भी 34 साल तक चले अदालती मुकदमे के बाद…….

करीब 36 साल पहले चासनाला तत्कालीन बिहार राज्य जो अब झारखण्ड राज्य का हिस्सा हैं। खदान हादसे में 375 मजदूरों की जलसमाधि के लिए अदालत ने दो अधिकारियों को दोषी ठहराया है।
अदालत ने 15 मार्च 2012 गुरूवार को चासनाला कोलियरी के तत्कालीन एजेंट प्लानिंग एंड ग्रुप सेफ्टी ऑफिसर दीपक सरकार और मैनेजर रामानुज भट्टाचार्य को एक-एक साल कैद की सजा सुनाई है।
ऊपरी अदालत में अपील के लिए हालांकि उन्हें एक माह के लिए जमानत पर रिहा कर दिया गया है। चासनाला हादसे के दो साल बाद ही दोनों अधिकारियों को लापरवाही में दोषी पाते हुए बर्खास्त कर दिया गया था। इस मामले में दो अन्य आरोपी चीफ एक्जीक्यूटिव जे एन ओहरी और एजेंट एस के बनर्जी की ट्रायल के दौरान मौत हो चुकी है।
हादसे के दो वर्षों के बाद अदालत में चासनाला कोलियरी के चार अधिकारी जेएन ओहरी (चीफ एक्जीक्यूटिव), एसके बनर्जी (एजेंट), दीपक सरकार (एजेंट प्लानिंग एंड ग्रुप सेप्टी ऑफिसर) तथा रामानुज भट्टाचार्य (मैनेजर) के विरूद्ध मामला दर्ज किया जा सका।
अदालत में यह मामला 34 वर्षों तक चलता रहा। चारों आरोपियों ने समर्पण कर कोर्ट से जमानत भी ले ली थी। 20 साल तक मामला केवल गवाही पर ही चलता रहा।
इस दर्दनाक हादसे में 375 मजदूरों की मौत हो गई थी। मगर एक का भी पोस्टमार्टम नहीं कराया गया। प्रबंधन ने अधिकारियों को खदान के जो नक्शे दिये थे वे 1949 के थे और उनमें गलती थी। खदान के उस भाग में उत्पादन बंद हो चुका था, फिर भी वहां पर मजदूरों को काम करने के लिए भेज दिया गया था।
ज्ञातव्य है कि 27 दिसंबर 1975 के दिन करीब डेढ़ बजे चासनाला खदान के होराइजन (पिट) संख्या 1 एवं 2 में कोयला खनन के दौरान एक विस्फोट के कारण खदान में अचानक पानी भर गया। उसमें प्रथम पाली में काम कर रहे 375 श्रमिकों की जल समाधि हो गई। प्रबंधन की ओर से बचाव का प्रयास भी किया गया था लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। बाद में शक्तिशाली पंपों के जरिए खदान से पानी निकाला गया। लेकिन तब तक 375 श्रमिक पानी में डूबकर मौत के शिकार हो चुके थे।
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