संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

8,856 देशद्रोही : तमिलनाडू का एक ऐसा गांव जिसका हर निवासी जी रहा है देशद्रोह के साए में; भाग दो

सितंबर 2012 में आंदोलन की एक तस्वीर 

13 सितम्बर 2016 से हमने संघर्ष संवाद पर एक ऐसे गांव की कहानी शुरु की थी जिसके 8,856 ग्रामीण अपने गांव में परमाणु संयंत्र के खिलाफ विरोध करने के एवज में पिछले पांच साल से देशद्रोह का मुकदमा झेल रहे हैं। पढ़िए रिपोर्ट का दूसरा भाग; 

पहला भाग यहाँ पढ़े 

हालाँकि सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर 2014 के आर्डर के बाद 380 मामलों में से सिर्फ 240 रखे हैं, वहीँ न तो देशद्रोह का कोई मामला हटाया गया है और न ही धारा 121 ए में से कोई मामला हटाया गया है।

उदयकुमार, रेलवे के सेवानिवृत कर्मचारी के बेटे है। इन्होंने केरला विश्विद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक की डिग्री हासिल की और इथियोपिया में स्कूल टीचर के तौर पर काम करने बाद उन्होंने अमेरिका से शांति अध्ययन में डॉक्टरेट हासिल किया। अमेरिका से लौटने के बाद उन्होंने 2000 जर्मनी के ग्रीन मूवमेंट से प्रेरित होकर ग्रीन पार्टी की शुरुआत की। जल्द ही उन्होंने पीपल्स मूवमेंट अगेंस्ट न्यूक्लियर एनर्जी की स्थापना की। वो नागरकोइल, जो कि इदिन्थाकारई से 40 किलोमीटर दूर है, में अपनी टीचर पत्नी के साथ रहते है और एक स्कूल चलाते हैं। उनकी पत्नी के खिलाफ भी देशद्रोह का एक मामला दर्ज है क्योंकि वो भी पीपल्स मूवमेंट अगेंस्ट न्यूक्लियर एनर्जी की एक मीटिंग का हिस्सा थी।

देशद्रोह के पहले मामले में आरोपी फादर जेसुराज, चेरनमहादेवी से प्रदर्शन में हिस्सा लेने आये थे। वो कुडनकुलम आंदोलन में पढाई के समय से जुड़े हुए है। उन्होंने बताया कि 2011 के बाद मैंने खुद चर्च से विनती की कि मुझे मेरे कर्तव्यों से मुक्त कर दें ताकि मैं इस आंदोलन में हिस्सा ले सकूँ।

फादर जेसुराज को तिरुनेलवेली के बिशप से और दिल्ली के मोंसिगनोर से उनकी गतिविधियों के लिए कई बार चेतावनी भी मिली लेकिन वो फिर भी आंदोलन में शामिल हुए।

इदिन्थाकारई एक ईसाईयों का गाँव है, जहाँ सौ से कम हिन्दू परिवार रहते हैं। व्हाइट बोर्ड जो हर रोज हाथ से लिखा जाता है – अब 1850 तक पहुँच गया है – गाँव के सेंट लॉर्ड्स चर्च के सामने पंडाल में लगा हुआ है जिसमे लगभग 2000 लोग एक साथ बैठ सकते है। मरियम्मन मंदिर रोड के उस पार है।

सुंदरी, जिसने आंदोलन के चलते सबसे ज्यादा समय जेल में गुजर है, अपने पति के साथ अपने घर पर
शुरुआत में तो चर्च ने अपने को इस आंदोलन से दूर रखा। सुंदरी, जो कि देशद्रोह की आरोपी है और जिन्होंने से सबसे ज्यादा समय जेल में बिताया है, ने बताया, “फादर एफ जयकुमार के पास हमे समर्थन देने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था । किसी ने उनसे चर्च कंपाउंड में पंडाल लगाने को लेकर उनसे पूछा ही नहीं।”

एंटोनी केबिस्टन, एक अन्य आरोपी ने बताया, “फादर जयकुमार को भी तिरुनेलवेली के बिशप हाउस से फ़ोन आया कि वो गाँव छोड़ कर चले जाएं लेकिन उनको हमारे साथ खड़े होना पड़ा।”

जल्द ही, जैसे ही पुलिस गाँव में घुसने का प्रयास करती, चर्च की घंटी को जोर जोर से बजाया जाता ताकि गाँव वाले सावधान हो जाएँ और बिल्डिंग को कवर कर लें।

फादर जेसुराज ने उदयकुमार की तरह 2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोक सभा चुनाव लड़ा। जेसुराज ने चर्च को बताया कि जब तक उनका कोई प्रतिनिधि संसद में नहीं होगा तब तक उनकी समस्या का समाधान निकलना मुश्किल है। हालाँकि, चर्च पहले इस पर सहमत नहीं था और उनको निलंबित कर दिया। अंततः जेसुराज को चुनावों में 18,650 वोटों से हार का सामना करना पड़ा। जेसुराज, जो अब फिर से पुजारी हैं, तिरुनेलवेली के पास पलायमकोट्टाई में, कहते हैं कि उन्हें आंदोलन में हिस्सा लेने पर कोई पछतावा नहीं है, हालाँकि “अभी भी तकरीबन 135 मामले हैं, जिनमे से लगभग एक दर्जन देशद्रोह के मामले मेरे ऊपर दर्ज है”।

एंटोनी केबिस्टन कहते हैं कि एक पुजारी की उपस्थिति ने उनके आंदोलन को “सफल और शांतिपूर्ण” बना दिया। “एक तरफ फादर जयकुमार सिर्फ पुजारी थे तो दूसरी तरफ फादर जेसुराज थे जो पुजारी भी थे और प्रदर्शनकारी भी। उन्होंने आगे बढ़ कर इसमें हिस्सा लिया।”

22 नवम्बर 2011 को देशद्रोह का मामला

17 लोगों बुक किया गया; बाकि 600 लोगों को

22 नवम्बर 2012 को देशद्रोह का मामला

17 लोगों बुक किया गया जिसमे 2 महिलाएं भी शामिल है; बाकि 425 लोगों को

7 मई 2012 को उदयकुमार और 2265 लोगों को बुक किया गया

7 मई 2012 को उदयकुमार और 565 लोगों को बुक किया गया

2012 में पहले रिएक्टर की ओपनिंग से पहले, ग्रामीणों ने अपने विरोध को वल्लिईयुर और नागरकोइल जैसे आस पास के गाँवों में और शहरों में बढ़ाया और 20000 लोगों को इस आंदोलन की ओर आकर्षित किया।

सरकार ने हालाँकि संकरनकोविल के 2012 उपचुनावों तक गिरफ़्तारी पर रोक लगाई, जिसके बाद कार्रवाई की मांग शुरू कर दी।

देशद्रोह – 6 गाँव में देशद्रोह के लिए जिन युवाओं को बुक किया गया उनके पासपोर्ट ब्लैक लिस्ट कर दिए गए, इसकी वजह से कई लोगों को अपनी विदेश जाने की योजनाओं को विराम देना पड़ा।

इन एफ आई आर में और बाकियों में भी एक नाम जो बार बार आया वो था एंटोनी केबिस्टन का, जिनकी खुद की स्टेशनरी की दुकान है इदिन्थाकारई; पुष्परायण और मुगिलन, कार्यकर्ता जो इदिन्थाकारई आये थे इन गाँव वालों का समर्थन करने; मिल्टन, आंदोलन के मुखिया में से एक; सुंदरी, 46 वर्षीय महिला, जिन्होंने तमिलनाडु और गाँव के बाहर की रैलियों की अगुवाई की; एक 65 वर्षीय आंशिक रूप से अंधे दिहाड़ी मजदूर, आदि लिंगम और फादर जयकुमार।

एफ आई आर दिखाती हैं कि सारे मामले तीन पुलिस थानों में दर्ज हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी, जो कुडनकुलम में तैनात थे, ने बताया मामले पज़ह्वूर थाने और राधापुरम थाने के कहने पर कुडनकुलम थाने में दर्ज किये गए।

“एक डीएसपी रैंक के अधिकारी जो उस समय राधापुरम में तैनात थे ने अपने अधिकारियों के निर्देश पर स्थानीय थानों के लिए अंतिम निर्देश जारी किये। पुलिस के एक इंस्पेक्टर जनरल और साउथ जोन के डिप्टी आईजी ने सीधे तौर पर स्थिति पर नज़र रखी,” नाम न लिखे जाने की शर्त पर उन्होंने बताया।

केबिस्टन, जिनके ऊपर देशद्रोह समेत सैकड़ों मामले दर्ज हैं, ने “मीडिया विंग” संभाला। उन्होंने बताया, “मेरे पास बीएसएनएल का डायल-अप कनेक्शन था जिस से मैं आंदोलन के लाइव अपडेट करता था।” एक विडियो, जिसमे उनकी तीन साल की बेटी, नीलोफर, परमाणु विरोधी गाने गा रही है, उन्होंने पोस्ट किया और वो वायरल हो गया।

“वो गाती थी और नारे लगाती थी। वो जयललिता को भी डांट लगाती थी। एक दिन, कुछ शरारती तत्व आये और हमारी दुकान में आग लगा दी। उस हादसे के बाद नीलोफर डर गयी, ” केबिस्टन की पत्नी महेस्वरी ने बताया, जो विरोध में दस दिन से उपवास पर हैं।

केबिस्टन तीन सालों तक गाँव छोड़ कर नहीं जा सके क्यूंकि ऐसा डर था कि अगर वो बाहर गए तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा (कुछ जंगल के रास्तों को छोड़ दिया जाए तो सिर्फ एक ही रोड इदिन्थाकारई को बाकि दुनिया से जोड़ती है वो कुडनकुलम से होकर जाती है)। जब उनकी बहन की शादी हुई तो उन्हें दूल्हे के गाँव जंगल से लेकर जाना पड़ा,” उन्होंने बताया।

44 वर्षीय मिल्ड्रेड राज और उनके तीन बच्चे अभी भी आंदोलन का हिस्सा है। “हम तब तक इसमें हिस्सा लेंगे जब तक हमे सफलता नहीं मिल जाती,” वे कहती हैं।

44 वर्षीय मिल्ड्रेड राज और उनके तीन बच्चे भी आंदोलन का हिस्सा है। भले ही उन पर देशद्रोह का मामला हो और सैकड़ों मामले दर्ज हो वो फिर भी रोजाना चर्च पर आती है। उनके दो बेटे हैं जिनकी उम्र 20 और 18 वर्ष की है और एक बेटी है जिसकी उम्र 19 वर्ष है। बेटों के पास इंजीनियरिंग और समुद्री अध्ययन का डिप्लोमा है वहीँ उनकी बेटी अभी कॉलेज में पढ़ रही है। “हम तब तक यहाँ आते रहेंगे जब तक हम सफल नहीं होंगे,” मिल्ड्रेड कहती हैं।

मिल्ड्रेड मानती हैं कि मुझे परमाणु ऊर्जा की बारीकियों के बारे में नहीं पता। लेकिन वे पूछती हैं, “जब ये इतना ही सुरक्षित है तो क्यूँ दर्जनों बार इसे आपातकालीन स्थिति में बंद किया गया और उत्पादन में कमी क्यूँ हुई? कमीशनिंग टेस्ट बार बार फेल क्यूँ हुए और डेडलाइन्स क्यूँ आगे बढ़ाई गयी? कितने वैज्ञानिकों को सुरक्षा मानकों का उलन्घन करने पर सज़ा मिली?

68 वर्षीय लीला, जिन पर भी बहुत सारे आपराधिक मामले दर्ज हैं, मिल्ड्रेड के साथ ही थीं जब उन पर तिरुनेलवेली कलेक्टरेट पर हिन्दू कैडर के मुन्नानी लोगों उन पर विदेशी फंडिंग का आरोप लगा कर हमला कर दिया और उदयकुमार को इसाईओं का एजेंट बताया।

“उन्होंने हेलमेट पहना हुआ था और हम पर हमला कर दिया,” लीला, जो लगभग पूरा दिन आंदोलन में बिताती है। वो हँसते हुए कहती हैं, “क्या आपको लगता है कि मैं यहाँ मरूँगी?”

क्रमस जारी…………..
इसको भी देख सकते है