संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

8,856 देशद्रोही : तमिलनाडू का एक ऐसा गांव जिसका हर निवासी जी रहा है देशद्रोह के साए में; भाग तीन

13 सितम्बर 2016 से हमने संघर्ष संवाद पर एक ऐसे गांव की कहानी शुरु की थी जिसके 8,856 ग्रामीण अपने गांव में परमाणु संयंत्र के खिलाफ विरोध करने के एवज में पिछले पांच साल से देशद्रोह का मुकदमा झेल रहे हैं। पढ़िए रिपोर्ट का तीसरा भाग; 

पहला भाग यहाँ पढ़े

दूसरा भाग यहाँ पढ़े

सितंबर 2012 में देशद्रोह के 6 मामले
सितंबर 10
कितने लोगों पर मामला दर्ज हुआ: एक मामले में 49 लोगों पर नामजद मामला और 100 लोगों पर; दुसरे मामले में 48 लोगों पर नामजद मामला और 300 लोगों पर; तीसरे मामले में 18 लोगों पर नामजद मामला और 50 लोगों पर; चौथे मामले में उदयकुमार पर और 5000 लोगों पर (जिसे बाद में 2000 लोगों पर किया गया)

सितंबर 11 


कितने लोगों पर मामला दर्ज हुआ: एक दर्जन लोगों के साथ 3400 लोगों पर

सितंबर 2012 में पुलिस ने उन महिलाओं और बच्चों पर लाठीचार्ज किया जो सेंट लॉर्ड्स चर्च में प्रदर्शन वाली जगह में जाना चाह रहे थे।

10 सितंबर को 5500 लोगों पर देशद्रोह के चार मामले दर्ज किये गए, अपराध संख्या 345 में ही 5000 लोगों से ज्यादा पर मामला दर्ज किया गया। 11 सितंबर को 3000 लोगों पर देशद्रोह के दो और मामले दर्ज किये गए।

चालीस वर्षीय सुंदरी, जिसने त्रिची जेल में 98 दिन गुजारे और जिस पर एक दर्जन देशद्रोह के मामले सहित 300 से ज्यादा मामले दर्ज है, को 10 सितंबर को गिरफ्तार किया गया। सुंदरी प्रदर्शन कर रही महिलाओं की मुखिया थी जिसमे लगभग 85 सदस्य है और जो सैकड़ों बाकि लोगों से समन्वय स्थापित करती है।

जब सुंदरी जेल में थी जो उनके बच्चों, नौ साल का बेटा और दस साल की बेटी, की जिम्मेदारी उनके पति पर आ गयी। सुंदरी ने बताया, “जब मुझे कोर्ट ले जाया जाता था तो पुलिस मेरे बच्चों को मेरे पास  नहीं आने देती थी। वो रोते थे और पुलिस की गाडी के आस पास दौड़ते थे जब तक वो वहां से चली नहीं जाती थी।” आगे उन्होंने बताया कि सिर्फ उसी वक़्त वो रोयीं थी। जब वो विश्वास के साथ अपने काम में लगी हुई थी, तब उन्हें लगा कि वो अपने माँ होने के कर्तव्य का पालन ठीक से नहीं कर पा रही थी।

बाद में उन्होंने ‘इदिन्थाकारई का उग्र संघर्ष’ नाम से एक किताब जेल से ही लिखी। जेल में बिताये गए दिनों में और जेल के अपने बाकी साथियों के किस्सों में एक वो भी किस्सा है जिसमे वो अपने पति को खाने की विधि फ़ोन पर बताती थी क्योंकि उनके पति को खाना बनाना नहीं आता था।

देशद्रोह के मामले में सुंदरी ने सबसे ज्यादा समय जेल में गुजारा है। “मैं उन 7 महिलाओं और 63 पुरुषों में से एक थी जिन्हें 10 सितंबर 2012 को गिरफ्तार किया गया था। उनमे से 4 महिलाओं को 45 दिन बाद जमानत मिल गयी थी वही बाकि दो को 80 दिन बाद छोड़ दिया गया था। चूँकि मैं एक आतंकवादी थी तो मुझे मद्रास हाई कोर्ट जाना पड़ा तब मुझे 98 दिनों के बाद सशर्त जमानत मिली।”

उन्हें इस शर्त पर जमानत मिली कि उन्हें दो महीने तक रोज मदुरै स्थित तीनों पुलिस थानों में जाकर हाजिरी लगानी होगी जो कि उनके गाँव से 240 किलोमीटर दूर है। अपने गाँव लौटने से पहले उन दो महीनों के लिए वो मदुरै स्थित एक हॉस्टल में रही जहाँ उन्हें कुडनकुलम पुलिस थाने में 6 महीने तक हाजिरी लगानी थी।

सुंदरी बताती है, “सभी, यानि कि पुलिस, सरकार और यहाँ तक कि कोर्ट, ने भी उनके संघर्ष को हराने की कोशिश की। न कभी सरकार नें और न ही कभी कोर्ट ने ये जानने की कोशिश की कि उन पर कौन से चार्ज लगाए गए है। उल्टा उन्होंने हमे दूर दूर स्थित जेलों में भेज ताकि वो हमे परेशान कर सकें।”

देशद्रोह – 7 कथित तौर पर सुरक्षा का उल्लंघन करने पर और समय सीमा स्थगित करने पर वे कहते है कि सभी आंशिक रूप गलत शिकायतें थीं।

सुंदरी के ससुराल वालों ने देशद्रोह का तमगा लगने के चलते परिवार कर बहिष्कार कर दिया है।

गाँव के बहुत सारे युवाओं को अपने विदेश जाने का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा क्योंकि उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज है और उनके पासपोर्ट ब्लैक लिस्ट कर दिए गए हैं। बहुत सारे युवाओं को अपने पासपोर्ट आवेदनों के संसाधित होने का इंतजार करना पड़ा। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किये छब्बीस वर्षीय के विनोद का पासपोर्ट चार साल पहले ब्लॉक कर दिया गया था, उनको दो महीने पहले ही अपना पासपोर्ट वापस मिला है। विनोद ने बताया, “मुझे दुबई से तीन तीन नौकरियों के लिए बुलावा आया था जिनमे से एक कंपनी तो मुझे डेढ़ लाख रुपये महीने दे रही थी, अब मेरे पास कुछ नहीं है। उन्होंने कभी भी साफ़ तौर पर ये नहीं बताया कि मेरा पासपोर्ट क्यूँ नहीं क्लियर किया गया जबकि उनके पास मेरे खिलाफ दर्ज मामलों में ही कोई सीधा जवाब नहीं था।”

10 अगस्त 2016: 1000 मेगा वाट की क्षमता वाले केएनपीपी को कमीशन किया गया


देशद्रोह के 21 मामले अभी भी हैं

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और तमिलनाडु की मुख्य मंत्री ने एक साथ कुडनकुकम परमाणु संयत्र की एक इकाई को दुनिया के सबसे सुरक्षित संयत्रों में से एक बताते हुए कमीशन किया। उन्होंने ऐसा विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये किया जब मोदी दिल्ली में थे, पुतिन मास्को में थे और जयललिता चेन्नई में थी।

केएनपीपी साइट के निदेशक आर एस सुन्दर कहते हैं कि गाँव वालों को परमाणु ऊर्जा के बारे में पता नहीं है फिर भी वो इस पर आरोप लगा रहे हैं। “हम उनसे कई बार मिले और उनको कई बार ये समझाया कि ये सुरक्षित है। लेकिन वो ऐसे प्रश्न पूछते है कि जिनकी उनको कोई जानकारी नहीं है,” उन्होंने बताया।

सुरक्षा के उल्लंघन पर और समय सीमा के स्थगन के कथित आरोपों पर उन्होंने कहा कि सारी शिकायतें आंशिक रूप से गलत है। वे कहते हैं, “कई एजेंसियों ने और केंद्र के विशेषज्ञों ने सभी आवश्यक मंजूरियों को प्रमाणित किया है। दुर्भाग्यवश गाँव वाले ए पी जे अब्दुल कलाम जैसे व्यक्ति की बात मानने को भी तैयार नहीं है।”

कमीशनिंग वाले दिन भी घुमावदार सड़क के अंत में जहाँ इदिन्थाकारई में कुछ मुट्ठी भर महिलाएं अपना विरोध दर्ज कराने के लिए चर्च के पास एकत्रित हो गयी। एक दर्जन औरतें तो यहाँ हर रात सोती भी थीं।

सुंदरी, जो प्रदर्शन वाली जगह पर अक्सर आती है, बताती है कि उनकी गृहणी से एक “खूंखार नेता” तक का सफर एक साल में पूरा हुआ। “मैं उन महिलाओं में से थी जो सिर्फ पिक्चर और नाटक देखती थी। अब मैं पहले खबरें देखती हूँ।”

सुंदरी कहती है कि सरकार की ये बात कि परमाणु संयत्र पूरी तरह से सुरक्षित है हज़म नहीं होती। “शहरी लोगों के लिए हम अनपढ़ होंगे क्यूंकि वो समझते है कि वो अंग्रेजी जानते हैं। इसलिए वो चाहते है कि ये परमाणु संयत्र हमारे यहाँ लग जाए ताकि उनके उपभोग की सभी जरूरतें उससे पूरी हो जाएँ। लेकिन हमे पता है कि सुरक्षित क्यूँ नहीं है, हमे पता है कि हमारी सरकार कितनी योग्य है। जब 2004 में सुनामी आया था तब न तो कोई हमे बचाने आया और न ही हमारी नावों को। सरकार के पास जरूरी संसाधनों के बावजूद वो ये पता नहीं कर पाए कि सुनामी आ रही है। सरकार इतनी भी समर्थ नहीं है कि वो एक खोया हुआ जहाज ढूंढ लें या समुद्र में खोये हुए सैनिकों को ढूंढ ले। और वो चाहते है कि हम उनकी बात मान लें कि ये संयत्र सुरक्षित है? हमे अपनी लड़ाई अकेले लड़नी है।”

आईजी रैंक एक अधिकारी ने बताया कि उन्हें इस मामले की जानकारी है और ऐसे मामले आमतौर पर छ महीने में बंद कर दिए जाते है। “हम फाइल में लिख देते है कि ‘आगे की कार्यवाई खत्म’। लेकिन कुडनकुलम और इदिन्थाकारई वाले मामले पेचीदा है क्योंकि हमे गांववालों पर नज़र रखनी पड़ती थी। इन आरोपों को बनाये रखने से उनका गुस्सा ठंडा पद सकता है; 8000 से ज्यादा लोगों पर मामले दर्ज है जिससे उन लोगों में यह डर होगा कि वे लोग ऐसे प्रदर्शन फिर से न करें।”

जब उनसे आगे की कार्यवाई के बारे में पुछा गया तो उन्होंने कहा कि अब जांच के लिए या चार्जशीट दायर करने के लिए कुछ नहीं है। “ये मामले जो दर्ज हुए है वो लोगों में डर कायम करेंगे। जब मैं पांच साल बाद इसकी तरफ देखता हूँ तो समझ में आता है कि उन 8000 लोगों पर जो मामले धारा 121 और 124 ए के तहत दर्ज किये गए उनसे काम हुआ है।

सुंदरी का कहना है कि सरकार को इतना निश्चिन्त नहीं होना चाहिए। इदिन्थाकारई के समुद्र के किनारे जिसको ‘ब्रोकन कोस्ट’ यानि ‘टूटा हुआ तट’ कहा जाता है खड़ी होकर सुंदरी कहती है अब उनको इससे ये फर्क नहीं पड़ता कि उन पर कितने मामले दर्ज हो रहे हैं। “वो हमे आतंकवादी कहते है तो कहने दो। हमे पता है हम कौन है।” 5 सितंबर को इसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार की आलोचना देशद्रोह के अन्तर्गत नहीं आता, देश के सुदूर दक्षिणी हिस्से के गाँव में व्हाइट बोर्ड का आंकड़ा बदल कर 1846 कर दिया गया।

क्रमस जारी…………..
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