संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

हादसे के लिए जिंदल जिम्मेदार

गुजरी 7 मार्च को रायगढ़ में दर्दनाक घटना हुई। काम के दौरान पांच मजदूरों पर धधकती राख की बरसात हुई। जब तक उन्हें मलबे से उन्हें निकाला जाता, उनमें से चार दम तोड़ चुके थे। पांचवां मजदूर बुरी हालत में था, उसकी सांस भर चल रही थी। फिलहाल, उसके बचने के आसार नहीं दिखते। यह हादसा जिंदल के पावर प्लांट में हुआ। पेश है संघर्ष संवाद की यह रिपोर्ट:

तमनार तहसील के डोंगा महुआ स्थित जिंदल के कैप्टिव प्लांट में इन दिनों मरम्मत का काम चल रहा है। इसका ठेका जमुना कंस्ट्रशन कंपनी को दिया गया है। उस दिन इसके पांच मजदूर बायलर के नजदीक अपने काम पर जुटे हुए थे कि अचानक 45 फुट ऊंचे लेजर पाइप में धमाका हो गया। इस कारण बायलर से गर्मी से तपता डेढ टन से अधिक का मलबा उन मजदूरों पर जा गिरा। यह हादसा इतनी तेजी से हुआ कि उनके भाग निकलने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।

प्लांट में भगदड़ मच गयी। यह पता चलते ही कि वहां काम कर रहे मजदूर कहीं दिख नहीं रहे, मलबा हटाने का काम शुरू हुआ। उसमें दबे पांचों मजदूर मिले। इनमें चार मुर्दा हो चुके थे और पांचवां मजदूर अंतिम सांस गिन रहा था। उसे फौरान जिंदल अस्पताल ले जाया गया।

इस हादसे ने औद्योगिक क्षेत्र में मजदूरों की सुरक्षा का सवाल एक बार फिर सतह पर लाने का काम किया है। जमुना कंस्ट्रक्शन ने जिंदल कंपनी से प्लांट के रखरखाव का ठेका लिया। तो अब इस हादसे के लिए कौन जिम्मेदार है- जिंदल या जमुना? बदकिस्मत मजदूर भले ही जमुना कंपनी की तरफ से काम कर रहे थे लेकिन काम तो आखिर जिंदल प्लांट में ही कर रहे थे। जमुना को ठेका तो आखिर ज़िंदल ने दिया था। जाहिर है कि मजदूरों की सुरक्षा की निगरानी का काम ज़िंदल कंपनी का था। यह अनदेखी क्यों की गयी कि ठेकेदार कंपनी अपने मजदूरों की सुरक्षा को लेकर बेहद लापरवाह है। याद रहे कि मौत के चंगुल में फंसे मजदूरों के पास न तो हैलमेट था और ना ही जूते।

तो मुनाफे की लूट में कंपनियों को किसी की चिंता नहीं। अपने मजदूरों की भी नहीं। मजदूर उनके लिए औजार भर हैं। किराये के औजार सस्ते पड़ें तो उन्हीं को जुटाओ- झंझट से बचने के लिए ठेके पर काम कराओ। और ठेकेदार? वह अपने मजदूरों को जम कर चूसता है और उन्हें बंधुआ मजदूर सरीखा बना कर रखता है। यह उसके स्थाई मजदूर नहीं होते और न्यूनतम मजदूरी से लेकर चिकित्सा, स्वास्थ्य जैसी न्यूनतम सुविधाओं से वंचित रहते हैं। यहां आवाज़ उठाना अपनी मजदूरी से हाथ धो बैठना होता है।

हादसे के शिकार हुए सभी मजदूर स्थानीय निवासी थे। इस खबर ने कि इलाके के पांच मजदूर हादसे की चपेट में आये हैं, आसपास के गांवों में गुस्सा भड़क उठा। देखते-देखते हजारों लोग प्लांट के गेट पर जमा हो गये। पूरे दिन उन्होंने रास्ता रोके रखा और कंपनी के खिलाफ जम कर नारेबाजी की। बावजूद इसके कि ‘कानून-व्यवस्था’ को बनाये रखने के लिए भारी पुलिस बल और सरकारी अमला लोगों के जमा होते ही मुस्तैदी से पहुंच चुका था।

लेकिन खैर, यह लोगों की एकजुटता का नतीजा रहा कि जिंदल प्रबंधन को कहना पड़ा कि दुर्घटना में मारे गये मजदूरों के परिजनों और घायल मजदूर को कंपनी एक्ट के तहत मुआवजा दिया जायेगा। अब यह वायदा कब पूरा होता है या उसमें भी अगर-मगर होती है और या कि मामला ठंडे बस्ते में पहुंच जाता है, यह देखना अभी बाकी है।

अभी कुछ दिन पहले भी डोंगा महुआ माइंस के गेट के सामने ऐसी ही दर्दनाक घटना हो चुकी है। एक स्थानीय मजदूर उस ट्रक के नीचे आ गया जो जिंदल प्लांट के लिए कोयला ढोने का काम करता था। उस दुर्घटना ने आसपास के ग्रामीणों को आक्रोशित कर दिया। गुस्से में आकर उन्होंने प्लांट में थोड़ी तोड़फोड़ और आगजनी भी की। इसी बिना पर जिंदल प्रबंधन ने यह रोना रोया कि उनका लाखों का नुकसान हुआ। उसे मजदूर के मारे जाने की चिंता नहीं थी।

थैली में इतनी ताकत होती है और यह उसी का करिश्मा है कि जिंदल को कटघरे में खड़ा करने के बजाय उन 20 लोगों पर मामला दर्ज कर दिया गया जिन्होंने माइंस के गेट पर भारी जमावड़े की अगुवाई की थी।

रायगढ़ में जिंदल का साम्राज्य है। भले ही नवीन जिंदल कांग्रेसी सांसद हैं लेकिन उससे पहले महाबली उद्योगपति हैं और संसदीय राजनीति विचार से पहले धनबल से चलती है। इसीलिए भले ही दिल्ली और रायपुर में कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के खिलाफ तलवार भांजती दिखती हैं लेकिन छत्तीसगढ़ की भाजपाई सरकार उनकी परम भक्त है। तो जाहिर है कि पुलिस-प्रशासन ज़िंदल की सेवा में तत्पर है। श्रम विभाग की क्या मजाल कि चूंचपड़ करे? सबकी बोलती बंद है और जिंदल कानून को ठेंगा दिखाने के लिए आजाद है। इससे पहले भी जिंदल कंपनी के खिलाफ न जाने कब से होहल्ला मचता रहा है। लेकिन कंपनी का बाल भी बांका नहीं हुआ उल्टे उसका दबदबा और गाढ़ा हो गया।

दरअसल, रमन सरकार को चमकता विकास चाहिए, राज्य की विकास दर में बढ़त चाहिए। इसके लिए जिंदल साहब हैं या उन जैसे दूसरे घाघ उद्योगपति हैं जो सरकार चलानेवालों को हांकने का काम करते हैं। सरकारों का बनना-पलटना बहुत कुछ उन्हीं की कृपा पर निर्भर होता है। जय हो लोकतंत्र की….

लेकिन कहना होगा कि रायगढ़ में जिंदल के खिलाफ थोड़ा सुस्त हुई लड़ाई एक बार फिर लगता है कि कमर कस रही है। कुछ ही दिनों के अंतराल में हुई दो दुर्घनाओं के बाद बंधी हवा कुछ ऐसी ही है। वैसे, औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों की सुरक्षा का सवाल महज रायगढ़ या जिंदल के कारोबार तक सीमित नहीं है। यह पूरे छत्तीसगढ़ का हाल है और राज्य सरकार कंपनियों के लिए लाल कालीन बिछाने और राज्य में आसन जमा चुके उद्योगपतियों की सेहत का ख्याल रखने में मगन है।    

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