संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

भूमि अधिग्रहण विधेयक वापस लेने की मांग तेज

भूमि अधिग्रहण विधेयक के विरोध में जन संघर्षों की जनसुनवाई भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर तले दिल्ली के मुक्तधारा  में 23 जुलाई 2015 को आयोजित की गई. किसान नेताओं ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ देश भर में संघर्ष तेज़ करने की बात रखी. पेश है भाषा से साभार यह रिपोर्ट;

किसानों और कार्यकर्ताओं ने बृहस्पतिवार को राजग सरकार से भूमि अधिग्रहण विधेयक वापस लेने की मांग की, वहीं इस विवादित विधेयक पर विचार कर रही संसदीय समिति के सदस्यों ने उनसे कहा कि वे समर्थन के लिए सांसदों पर दबाव बनाएं। किसान संगठन ‘‘भूमि अधिकार आंदोलन’ की ओर से आयोजित एक जन सुनवाई में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सदस्यों और कांग्रेस सांसद जयराम रमेश तथा माकपा सांसद मोहम्मद सलीम सहित विधेयक के कई विरोधियों ने नरेंद्र मोदी सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि वह राज्यों से विधेयक पारित करवा कर नई तरह की साजिश कर रही है।

मेधा पाटकर ने कहा ‘‘हम चाहते हैं कि विधेयक वापस लिया जाए। हम किसानों के लिए भूमि अधिकार सुरक्षित करना चाहते हैं। मोदी की ओर से राज्यों को अपने-अपने कानून तैयार करने के लिए कहना और कुछ नहीं बल्कि एक तरह से अपनी हार स्वीकार करना है क्योंकि किसान इस मुद्दे पर कड़ा रख अपनाए हुए हैं।’उन्होंने कहा ‘‘इससे यह भी स्पष्ट होता है कि वह भूमि विधेयक को बढ़ावा देने, राज्यों से पारित कराने की बात कर नई तरह की साजिश कर रहे हैं लेकिन जनांदोलन इस कानून का विरोध राज्य स्तर पर करने के लिए भी कमर कस चुका है।’ संगठनों ने यह सुनिश्चित करने के लिए प्रस्ताव भी पारित किया जिससे भूमि अधिग्रहण से पहले किसानों की सहमति हासिल करने और सामाजिक प्रभाव आकलन के प्रावधान बने रहें। रमेश ने किसानों को सलाह दी कि वे समिति के उन छह सदस्यों पर दबाव बनाएं जिनके वोट समिति की रिपोर्ट पूरी होने पर फैसला लेने के लिए अहम हैं। जेपीसी में 30 सदस्य हैं।

रमेश ने कहा ‘‘समिति में ऐसे 13 सदस्य हैं जो विधेयक में होने वाले संशोधनों के विरोध में हैं जबकि 11 इसके पक्ष में हैं। इसलिए बाकी बचे छह सदस्यों, जिनमें ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों के नेता हैं, के वोट ज्यादा मायने रखते हैं। इसलिए आपको अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उन पर दबाव बनाने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि समिति का कार्यक्षेत्र विधेयक में 15 प्रस्तावित संशोधनों तक ही सीमित है। कांग्रेस नेता ने केंद्र पर अपनी प्रशासनिक और नैतिक जिम्मेदारी से भागने का भी आरोप लगाया। रमेश ने यह भी स्वीकार किया कि वह पिछली यूपीए सरकार की ओर से पारित कराए गए 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे लेकिन एक कैबिनेट मंत्री होने के नाते उन्हें बीच का रास्ता निकालना था। सलीम ने किसानों से कहा कि वे अपने-अपने सांसदों पर दबाव डालें कि वह सही रख अपनाएं ताकि सरकार विधेयक पर अपने रख में बदलाव के लिए मजबूर हो। उन्होंने कहा ‘‘यदि आप सांसदों पर भरोसा करेंगे तो आप ठगे जाएंगे। इसलिए अपने संबंधित सांसदों को मजबूर करें कि वह सरकार को अपने रवैये में बदलाव पर मजबूर कर दें।’ एमडीएमके नेता वाइको ने कहा कि उनकी पार्टी पूरी तरह विधेयक के विरोध में है, क्योंकि यह ‘‘किसान विरोधी’ है।

‘‘भूमि अधिकार आंदोलन’ की ओर से आयोजित जन सुनवाई में उठाई आवाज केंद्र सरकार पर राज्यों से विधेयक पारित करवा कर नई तरह की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए मेधा पाटकर ने कहा, हम चाहते हैं कि विधेयक वापस लिया जाए.

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