संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

कोयले से बिजली, बिजली से राखड़ और राखड़ से तबाही

-दीपमाला पटेल और ध्वनि शाह

हमारे यहां बिजली के लिए कोयले का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है, लेकिन उससे पैदा होने वाली राख पर्यावरण, पानी, खेती और हवा तक को खतरे में डालती है। पिछले महीने महाराष्ट्र के नागपुर में राखड के तालाब टूटने के दो हादसे हुए हैं। प्रस्तुत है, उन दुर्घटनाओं के प्रभावों पर आधारित दीपमाला पटेल और ध्वनि शाह की यह रिपोर्ट;

पिछले महीने, 16 जुलाई 2022 को सुबह हुई दुघर्टना में, 1974 में शुरू हुए (47 वर्षीय) महाराष्ट्र के नागपुर स्थित ‘कोराड़ी थर्मल पावर स्टेशन’ के राख-तालाब का एक हिस्सा टूट गया और उसमें जमा हुआ पानी और राख गावों में, नदी-नहर, पीने के पानी के स्त्रोतों में, कुओं में, खेत-खलियानों, घरों इत्यादि में घुस गई। पावर प्लांट के पास से गुजरने वाली कोलार और कन्हान नदियां बहुत ज्यादा प्रभावित हुईं। ये नदियां नागपुर शहर के पीने के पानी के मुख्य स्त्रोत हैं। राख और पानी हर जगह पहुंच गया, जिससे भारी नुकसान और प्रदूषण हुआ।

सवाल उठता है, क्या यह जानबूझकर किया जा रहा है?
महाराष्ट्र सरकार के ‘महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी’ (महाजेनको) द्वारा संचालित ‘कोराडी विद्युत केंद्र’ से निकली राख, 314 हेक्टेयर में फैले राख-तालाब में जमा की जाती है। पर्यावरण विभाग के ‘परिवेश पोर्टल’ पर उपलब्ध साइंटिस्ट–ई की 29 दिसंबर 2021 की रिपोर्ट में विद्युत केंद्र के प्रबंधन के कहे अनुसार, इस तालाब में लगभग 1,72,73,126 मेट्रिक टन राख जमा है। 47 वर्षों से कोयले पर चलने वाले इस ‘ताप विद्युत केंद्र’ में कुल 10 यूनिट थे, जिसमें से सिर्फ 660 मेगावाट के 3 यूनिट चल रहे थे। इन तीन यूनिटों की राख और पहले से जमा हुई राख, सब पानी में मिलाकर, खैरी नाले पर बने खसाला बांध में जमा की जाती थी।

अखबार में छपी प्रारंभिक रिर्पोट के अनुसार बांध टूटने के महज 6 घंटे के बाद बड़ी मात्रा में राख पानी के साथ बह गई। जानकारों का कहना है कि 250 ट्रक चलाने के बाद भी इतनी राख निकालने में 8 महिने का समय लग जाता। राख निपटान की लागत को बचाने के लिए और ‘महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ की कार्यवाही से बचने के लिए ‘कोराडी परियोजना प्रशासन’ ने जान-बूझकर बांध फटने की अनदेखी की और फटने के बाद तत्काल उपाय नहीं किया। स्थानीय लोगों के अनुसार यह राख-तालाब जनवरी में ही पूरी तरह से भर गया था। उन्होंने ‘महाजेनको’ को आगाह किया था, लेकिन अधिकारियों ने जानबूझकर इस बात पर ध्यान नहीं दिया और तालाब को टूटने के लिए छोड़ दिया।

कानूनी कार्यवाही का कोई डर नहीं
इस सबमें एक और चौंका देने वाली बात है, कि ‘कोराडी ताप विद्युत केंद्र’ का राख-तालाब ही नहीं, परंतु 10 जुलाई 2022 को ‘खापरखेड़ा विद्युत केंद्र’ का राख-तालाब भी सुबह 3 बजे टूट गया। प्रबंधन ने तुरंत जवाबी कार्यवाही तो की, लेकिन ‘खापरखेड़ा विद्युत केंद्र’ के नजदीक से गुजरने वाली कन्हान नदी में बहुत बड़े पैमाने पर राख आने से नागपूर के 45 प्रतिशत क्षेत्र को पहुँचने वाला पीने का पानी रोकना पडा। राख-तालाब के प्लानिंग और रखरखाव में कमी के चलते पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। ‘खापरखेड़ा विद्युत केंद्र’ की पाईपलाइन लीकेज होने से बड़ी मात्रा में राख नदी में जा रही है। यह सब इसलिए भी हो रहा है कि इन विद्युत संयंत्रों के प्रबंधन को किसी भी तरह की कार्यवाही का डर नहीं है।

पर्यावरण नियमों का व्यापक उल्लंघन
प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार थर्मल पावर प्लांट की राख के निपटान में पर्यावरण नियमों का व्यापक रूप से उल्लंघन किया जाता है। बांध निर्माण के दौरान मंत्रालय और ‘महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल’ की अनुमति नहीं ली गई थी। बांध की क्षमता क्या होगी, ऊंचाई कितनी रखी जाएगी यह कहीं भी नहीं देखा गया। हर माह प्रदूषण बोर्ड को दी जाने वाली जानकारी भी नहीं दी जा रही थी। 100 प्रतिशत राख उपयोग करने का नियम होता है, लेकिन पिछले कई वर्षों से 10 प्रतिशत भी राख का उठाव नहीं किया गया।

इन क्षेत्रों में काम करने वाली संस्था ‘सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ और ‘मंथन अध्ययन केंद्र’ की विभिन्न रिपोर्टों से पता चलता है कि कोराडी और खापरखेड़ा विद्युत केंद्र से निकलने वाले प्रदूषण के कारण बहुत बड़े स्तर पर स्थानीय लोगों व पर्यावरण का नुकसान हो रहा है। “पोल्यूटेड पावर रिपोर्ट“ में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है कि खापरखेड़ा और कोराडी विद्युत केंद्र के विविध उल्लंघन के बाद भी पावर प्लांट को मंजूरी मिलना बंद नहीं हुई। राख-बांध टूटने के बाद ‘महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मण्डल’ ने पर्यावरण संबंधी शर्तों का उल्लंघन करने पर ‘कोराडी विद्युत केंद्र’ की 12 लाख की बैंक गारंटी जब्त तो की, लेकिन उसके बदले में 24 लाख की गारंटी मांगी।

इससे पता चलता है कि प्रशासन द्वारा की गई कार्यवाही बहुत आम सी है, यह सिर्फ लीपापोती है। साल 2015 में भी ‘कोराडी विद्युत केंद्र’ की 25 लाख की बैंक गारंटी स्थगित की गई थी। क्या ‘महाजेनको’ पर हुई यह कार्यवाही उसे बचाने के लिए की गई है? जिन बैंकों से इन परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं है कि वे बिजली संयंत्र प्रबंधन के द्वारा की जा रही लापरवाही व बिजली संयंत्र से होने वाले पर्यावरण के नुकसान की समय-समय पर समीक्षा करें और उसके उचित सुधार के लिए कार्यवाही करें?

जहां बांध का काम अधूरा था, वहीं से टूटा बांध
कई शिकायतों के बाद भी ‘महाजेनको’ ने 2.5 किमी बांध की उंचाई 308 मीटर तक बढ़ाने की प्रक्रिया में देरी कर दी। जिस वजह से ठेकेदार ने भी कार्य करने में देरी की। जून तक बांध के 100 मीटर के हिस्से का काम बाकी था और इस लापरवाही से यह बांध उसी जगह से टूट गया। राख-तालाब से प्रभावित खैरी पंचायत के सरपंच मोरेशवर कापसे बिजली संयंत्र मालिक ‘महाजेनको’ को लापरवाह ठहराते हुए बताते हैं कि जनवरी 2022 में ही राख-तालाब पूरी तरह से भर गया था। ‘महाजेनको’ की जिम्मेदारी थी कि सारी राख इस्तेमाल हो जाए, लेकिन उसने वह नहीं किया। इतना ही नहीं, राख-तालाब का निर्माण घटिया है, इसे राख-तालाब में जमा राख और मिटटी से बनाया गया, जिससे बांध बहुत कमजोर था। इसकी काले पत्थरों से पिंचिंग जरूरी होती है। अभी भी टूटे हुए हिस्से में राख का बांध बनाया गया है, इससे पता चलता है कि अभी भी प्रशासन गंभीर नहीं है।

विद्युत केंद्र के प्रबंधन ने बांध की तात्कालिक मरम्मत करने की कोशिश की है, परंतु इसका भविष्य क्या होगा? लोगों के मन में अभी भी डर है कि अगर तेज बारिश हुई तो फिर से बांध टूट जाएगा। यह देखना है कि इस तबाही के बाद प्रशासन कैसे ऐसे राख-तालाब से होने वाले हादसों को रोकने के लिए कदम उठाता है और पर्यावरण व लोगों का पुनर्वसन करता है?

राख-तालाब टूटने से क्षेत्र में हुआ नुकसान
इस राख की बाढ़ की वजह से म्हसाला और खैरी गॉव के पानी के स्त्रोतों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। म्हसाला गॉव की पानी सप्लाय लाइन के 60 फीट पाइप बह गए और पानी सप्लाई ठप हो गई। खैरी गांव में पीने के पानी व अन्य जरूरतें 2 कुओं से पूरी होती थी। म्हसाला और कवठा गांवों के लोगों के अनुसार उनके गांवों के पानी के स्त्रोत पीने योग्य नहीं हैं। इसलिए महाराष्ट्र शासन की ‘जल स्वराज योजना’ के तहत ‘महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण’ के द्वारा कवठा, खसाला, म्हसाला व भिलगांव में पीने के पानी के लिए आरओ प्लांट लगाया गया है।

अफसोस है कि इस प्लांट का काम 2020 पूरा होना था, लेकिन अभी तक 75 प्रतिशत काम ही हुआ है। इस पानी की सप्लाई दिन में 12 घंटे होना थी जो अभी सिर्फ आधा घंटा हो रही है, बाकी समय लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। दुर्भाग्य से खैरी गांव जो, राख-तालाब फूटने से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, वह इस योजना से वंचित है। खैरी गांव के लोग वाटर एटीएम कार्ड के माध्यम से 20 लीटर पानी के लिए 5 रुपये देते हैं, लेकिन गांव के अत्यंत गरीब और दुर्बल यह एटीएम इस्तेमाल नहीं कर पाते।

राख-तालाब टूटने से जगदम्बा म्हसाला टोली के लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। रेलवे लाइन से सटी बस्ती में 150 से अधिक परिवार रहते हैं, इसमें से 13 मकान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए-उनका पूरा अनाज बह गया, कपड़े, बिस्तर व अन्य सामान पानी से ख़राब हो गए। ख़ासाला के भट्टू चौधरी की 12 बकरी और 4 गाय बह गईं तथा एक भैंस भी मर गई। म्हसाला गांव की 1 चाय-नाश्ते की दुकान का सारा सामान बह गया। लगभग 100 ईंट भट्टों को भारी नुकसान हुआ क्योंकि लाखों तैयार ईंटें राख और पानी के साथ बह गईं। कई एकड़ कृषि क्षेत्र नष्ट हो गया।

म्हसाला के 4 किसानों की कपास, सोयाबीन व सब्जी की खड़ी फसल में राख युक्त पानी भरने से फसल के पीले हुए पत्तों को दिखाते हुए म्हसाला के सूर्यभान माकडे बताते हैं, इस साल की फसल तो बर्बाद हो गई, लेकिन उनकी जमीन और कितने सालों तक अनुपजाऊ रहेगी यह देखना होगा। इन 47 सालों में बिजली संयंत्र से हुए प्रदूषण से फसल का उत्पादन 98 प्रतिशत तक कम होने से पहले ही गांव के 90 प्रतिशत लोगों ने खेती करना छोड़ दिया है। अब बाकी बचे किसानों पर भी इसका असर होगा। ‘कोराड़ी पावर प्लांट’ के पर्यावरण प्रभाव से क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इस राख-तालाब के टूटने से भी लोगों पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ा है।

सुश्री दीपामाला पटेल और ध्वनि शाह ‘सेंटर फॉर फायनेंशियल अकाउन्टेबिलिटी’ की शोधार्थी हैं

साभार: सप्रेस

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