संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

जन सुनवाई का नाटक : जन विरोध को दबाने के लिए आँसू गैस, लाठी, गोली का इस्तेमाल

रायगढ़ के दर्रामुंडा के लोग नहीं चाहते थे कि कोई कंपनी उनके इलाक़े में डेरा डाले और उन्हें कहीं का न छोड़े लेकिन सरकार तो यही चाहती थी। इसलिए गुजरी 17 मई 2010 को एसकेएस स्टील एंड पावर लिमिटेड की परियोजना के लिए जन सुनवाई का आयोजन तय कर दिया गया।

अब लोकतांत्रिक और कल्याणकारी सरकार दाऊद इब्राहिम तो हो नहीं सकती। इसलिए जन सुनवाई का नाटक है। परियोजना स्थल से दूर और तगड़ी सुरक्षा के बीच उसका मंचन है जिसमें सरकार और कंपनी के अधिकारी हैं और जुटायी गयी भरोसेमंद जनता है जिसका काम हाथ उठा कर परियोजना पर केवल अपनी रजामंदी देना है। इस तरह जन सुनवाई का कामयाब होना पहले से तय है भले ही प्रभावित जनता बाहर शोर मचाये और ज़्यादा बवाल मचाये तो लाठी-गोली खाये, जेल जाये। कहना होगा कि छत्तीसगढ़ सरकार जन सुनवाई के इस खेल में सबसे आगे है और कंपनीपरस्ती की मिसाल कायम करने में जुटी है।
सरकारी बंदोबस्त चाक-दुरुस्त था लेकिन जनता के तेवरों को देखते हुए कंपनी को जन सुनवाई की कामयाबी पर शक था। कंपनियां जानती हैं कि सरकार, प्रशासन और मीडिया को रिश्वत की डंडी से किस तरह हांका जा सकता है, कि अदालतों में भी बिकाऊ ओहदेदार मिल जाते हैं। इसका अंदाज़ा ज़रुर नहीं था कि ग़रीब-वंचित जनता को रिश्वत के झुनझुने से बहलाया-फुसलाया नहीं जा सकता और कंपनी यहीं मात खा गयी। घूस बांटने आये उसके अधिकारियों को लोगों ने धरदबोचा। उनका मुंह काला किया, कान पकड़ कर उनसे उठा-बैठक करायी और जूतों की माला पहना कर उनका जुलूस निकाला। उन्हें छुड़ाने के लिए पुलिस बल को लाठी चार्ज करना पड़ा, आंसू गैस छोड़नी पड़ी। झारखंड के पोटका प्रखंड के एक गांव में भूषण स्टील कंपनी के प्रतिनिधियों का भी स्वागत इसी अंदाज में किया गया था। वहां तीखे जन विरोध ने पहले जिंदल को भगाया और फ़िर भूषण को।
रायगढ़ के तमनार ब्लाक में पांच कोयला खदानें हैं। इनमें तीन जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड के नाम हैं। 8 मई, 2010 को उसकी एक और कोयला खदान के लिए जन सुनवाई का आयोजन हुआ था और जिसमें गांववालों ने एक आवाज़ में उसका भारी विरोध किया था। जन सुनवाई खटाई में पड़ गयी और उसका समापन लाठी चार्ज से हुआ जिसमें सौ से ज़्यादा लोग घायल हुए। पहली जन सुनवाई भी इसी तरह फिस्स हो गयी थी।
संघर्षरत लोगों के हौसले बुलंद: जिंदल के खिलाफ मुकदमा दर्ज
रायगढ़ के रमेश अग्रवाल जन चेतना नामक सामाजिक संगठन के प्रमुख हैं। सरकार की ज़मीन हड़पो मुहिम और कंपनियों के कारण होनेवाले विस्थापन और प्रदूषण के खि़लाफ़ बरसों से लोगों को संगठित करने और उनकी आवाज़ बुलंद करने का काम करते रहे हैं। तमाम फ़र्जी जन सुनवाइयों के गवाह रहे हैं और उसकी कामयाबी के कपड़े उतारते रहे हैं। राजेश त्रिपाठी और हरिहर पटेल जैसे जुझारु नाम इस मुहिम में उनके हमक़दम रहे हैं। इसी का नतीज़ा था कि रायगढ़ में पावर प्लांट लगाने की जिंदल की परियोजना के पैर उखड़ गये। जिंदल की दबंगई का आलम यह था कि अभी क्लियरेंस हासिल करने की प्रक्रिया शुरु भी नहीं हुई थी कि दूसरी जगह पर पावर प्लांट लगाने का काम शुरु हो गया। इसकी शिकायत राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से की जा चुकी थी लेकिन कार्रवाई के नाम पर केवल जांच पर जांच हुई और ख़तो-क़िताबत। आखि़रकार, रमेश जी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से गोहार लगायी। आरोप सही निकले और जोकि क्लियरेंस हासिल करने के लिए तय हुई शर्तों का खुला उल्लंघन था। इस आधार पर उन शर्तों को ही रद्द कर दिया गया। आंदोलनकारियों के लिए यह जितनी बड़ी जीत थी, जिंदल के लिए उतना ही बड़ा झटका। इसके तुरंत बाद 23 जून को जिंदल ने रमेश जी पर मुक़दमा ठोंक दिया कि उन्होंने आठ मई की जन सुनवाई में हंगामा न खड़ा करने के एवज में पांच करोड़ रुपये की मांग की थी। लेकिन उल्टा चोर कोतवाल को देर तक नहीं डांट सका। बढ़ते जन दबाव ने मौसम ऐसा बदला कि गुज़री 7 जुलाई 2010 को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जिंदल के खि़लाफ ग़ैर कानूनी तरीके से परियोजना शुरु करने का मुक़दमा दायर करना पड़ा।
जिंदल उन कंपनियों में है जो रायगढ़ ही नहीं, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में लोगों और क़ुदरत की सेहत बिगाड़ने के लिए ज़िम्मेदार है और क्या विरोधाभास है कि रायगढ़ की उसकी एक परियोजना के लिए उसे पर्यावरण प्रबंधन के अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से नवाज़े जाने का फ़ैसला हो गया और वह भी सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग के सदस्य पीएन भगवती की अध्यक्षता में हुई बैठक में। और आप जानते हैं कि जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड के मालिक नवीन जिंदल राज्य सभा में कांग्रेस के सांसद भी हैं। समझा जा सकता है कि उनकी कंपनी के खि़लाफ़ कार्रवाई होने में इतनी देर क्यों हुई ?
प्रदूषण, अंधाधुंध औद्योगीकरण तथा कारपोरेट्स के खिलाफ जनसंगठनों ने निकाली महारैली
रायगढ़, 6 जून, 2010: एक ओर जहां उद्योग प्रबंधन पर्यावरण विभाग और वन विभाग के अधिकारी विश्व पर्यावरण दिवस मनाने के कार्यक्रम आयोजित कर वाहवाही लूटने के प्रयास में लगे रहे वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ विस्थापन विरोधी मंच के सैकड़ों आदिवासी कार्यकर्ताओं व कई जनसेवी संगठनों ने औद्योगिक प्रदूषण और अंधाधुंध औद्योगीकरण तथा जल-जंगल-जमीन का शोषण करने वाले कारपोरेट्स घरानों तथा प्रशासन के खिलाफ लामबंद होकर जबरदस्त विरोध करते हुए महारैली निकाली। इस महारैली में अलग-अलग जिलों से आये 19 जनसंगठनों ने शिरकत की। इस महारैली का आयोजन छत्तीसगढ़ विस्थापन विरोधी मंच द्वारा किया गया।
रैली दोपहर 12 बजे नटवर हाईस्कूल मैदान से प्रारंभ होकर महात्मा गांधी चौक, सुभाष चौक, न्यूमार्केट, गौरीशंकर मंदिर रोड, गापी टाकीज होते हुए कलेक्टर कार्यालय पहुंची। जहां कलेक्टर कार्यालय का घेराव करते हुए प्रतिनिधि मंडल द्वारा कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौंपा गया।
इस महारैली में जमीन बचाओ संघर्ष समिति जशपुर; आदिवासी किसान मजदूर एकता संगठन गारे तमनार; उद्योग प्रभावित किसान प्रभावित संघ बलौदा बाजार; जनचेतना, रायगढ़; भूमि बचाओ संघर्ष समिति, धर्मजयगढ़; छत्तीसगढ़ महिला जागृति संगठन डभरा; ग्राम विकास एवं सुरक्षा समिति, छुरीकला कोरबा; जूरमिल मोर्चा, अंबागढ़ चौकी; संयुक्त किसान मोर्चा राजनंदगांव; ग्राम सभा परिषद, सरगुजा, स्पंज आयरन विस्थापन विरोधी संगठन, राहौद; मेहनतकश आवास अधिकार संघ, रायपुर; वन ग्राम संघर्ष समिति, नगरी सिहावा; छत्तीसगढ़ मजदूर किसान संगठन, जांजगीर चांपा; दलित मुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़; छत्तीसगढ़ संग्रामी श्रमिक संघ दल्ली राजहरा; भारत जन आंदोलन सरगुजा; रायगढ़ संघर्ष मोर्चा एवं अन्य प्रतिभागी संगठन शामिल हुए। इस रैली में राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री के नाम जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा तथा रायगढ़ जिला पर्यावरण अधिकारी का पुतला भी जलाया गया।
जहां एक तरफ इस तरह की आवाजें उठ रही हैं वहीं दूसरी तरफ एनएमडीसी ने ऐलान किया है कि एनएमडीसी आयरन ओर की पाइप लाइन स्थापित करने के लिए 3,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी।
एनएमडीसी ने कहा है कि वह छत्तीसगढ़ में अपने घरेलू स्टील ग्राहकों को आयरन ओर की सप्लाई निश्चित करने के लिए 12 मिलियन टन सालाना की क्षमता वाली पाइप लाइन स्थापित करेगी। इस पाइप लाइन के लिए एनएमडीसी 3,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। यह पाइप लाइन बैलाडीला माइन्स से वायजेग तक बिछाई जायेगी तथा इसकी लम्बाई 424 कि.मी. होगी। कम्पनी की योजना के अनुसार इस साल अक्टूबर तक इसके लिए आदेश जारी कर दिया जायेगा तथा अगले दो सालों में इस काम को पूरा कर लिया जायेगा। इस पाइप लाइन से कम्पनी को अपने घरेलू ग्राहकों जैसे आरआईएनएल तथा एस्सार स्टील के लिए आयरन ओर का उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी। इसी कम्पनी की 274 कि.मी. लम्बी एक अन्य (आयरन ओर सप्लाई करने वाली) पाइप लाइन को 2009 में माओवादियों द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। इसकी मरम्मत अभी तक नहीं हो पायी है। कम्पनी अपनी उत्पादन क्षमता को 22 मिलियन टन सालाना से बढ़ाकर 41 मिलियन टन सालाना करना चाहती है। इसके लिए कम्पनी 3,400 करोड़ रुपये का निवेश कर रही है। इसमें से 2,000 करोड़ रुपये निवेश किये जा चुके हैं। (पीटीआई)
इस बीच में हालात ने कुछ ऐसी करवट बदली है कि नक्सलियों के हमलों के बाद सीआरपीएफ ने बस्तर से हटने की इच्छा जताई है।
सीआरपीएफ ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में बुरी तरह से नक्सल प्रभावित इलाकों से हटने की इच्छा जताई है। सीआरपीएफ के इस कदम का छत्तीसगढ़ पुलिस ने विरोध किया है।
सरकारी सूत्रों ने यह भी बताया है कि सीआरपीएफ ने इसके साथ ही नारायणपुर स्थित अपने कैम्प की सुरक्षा मुहैया करवाने के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस से सम्पर्क भी किया है। नारायणपुर कैम्प में हुए नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 27 जवान मारे गये थे। इस हमले के तुरंत बाद सीआरपीएफ के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा था कि अगर पुलिस ने इस क्षेत्र में उनके 2 कैम्पों की निगरानी नहीं की तो वह दुरई रोड स्थित अपनी चौकी को छोड़ देंगे। इसके बाद लगभग 100 पुलिस के जवान इन दोनों कैम्पों की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए तैनात कर दिये गये।
साझे संघर्ष की राह पर सीमेंट मजदूर
छत्तीसगढ़ सीमेंट विकास श्रमिक संघ जो प्रदेश के सात सीमेंट संयंत्रों के मजदूरों का साझा मंच है वो साम्राज्यवादी लूट और दमन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। भिलाई के सीमेंट मजदूरों ने औद्योगिक हड़ताल करने का निर्णय लिया था परंतु इसकी तारीख को गुप्त रखा गया था, इसका कारण था कि पूँजीपति इसको विफल करने की योजना न बना सके। यहाँ तक कि हड़ताल के लिए जो पर्चा बाँंटा गया उसमें भी दिनांक अंकित नहीं था। शाम से ही घर-घर जाकर कार्यकर्त्ता यह बताने में जूट गये कि कल सुबह से यह प्रतीेकात्मक हड़ताल आरम्भ होगी। सुबह से ही मजदूर अपने परिवार और बच्चों के साथ फैक्ट्री के गेट पर जमा होने लगे। यह प्रदर्शन सुबह 7 बजे से 10 बजे तक चला और यह तब  रूका जब प्रबंधन मजदूर प्रतिनिधियों से बातचीत के लिए तैयार हो गया। प्रबंधन के साथ मजदूर प्रतिनिधियों की वार्ता काफी तनावपूर्ण रही क्योंकि प्रबंधन का कहना था कि वे बोनस की मांग ठेकेदारों से करे क्योंकि वे ठेका मजदूर हैं जबकि प्रतिनिधियों का कहना था कि वे सीमेंट कम्पनी के अस्थाई मजदूर हैं और उन्हें स्थाई किया जाना चाहिए। क्योंकि सीमेंट वेज बोर्ड के अनुसार सीमेंट उद्योग में ठेका मजदूरी वर्जित है। अभी इस उद्योग में तकरीबन 5000 ठेका मजदूर कार्यरत हैं। 2006 में जब सीमेंट कम्पनी को 500 मजदूरों की स्थाई करना पड़ा तभी से कम्पनी बौखलाई हुई है और मजदूरों की एकता तोड़ने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रही है। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा ने इस अन्याय और अत्याचार के खिलाफ करने की ठान ली है। यह हड़ताल तो संकेत मात्र थी। यह हड़ताल जिन मांगों को लेकर की गयी थी, वो निम्नवत है –
स्थाई उद्योगों में मजदूरों को स्थाई किया जाए;  सभी उद्योगों के मजदूरों को बोनस मिले;  न्यूनतम मजदूरी मिले; हाजरी कार्ड तथा सुरक्षा का प्रबंध हो;  सीमेंट उद्योग में सीमेंट वेज बोर्ड और इंजीनियरिंग उद्योगों में इंजीरियरिंग वेज बोर्ड लागू हो;  मजदूरों के लिए सुविधा सम्पन्न अस्पताल हो;  स्थायी उद्योगों में ठेकेदारी प्रथा बंद हो;  महिला मजदूरों का सुरक्षा प्रबंध हो;  केवल आठ घंटे का काम लिया जाय; किसानो का कर्ज माफ किया जाय और उन्हें बर्बाद फसल का मुआवजा मिले; मजदूरों समेत महिलाओं, शिक्षाकर्मियों, वन मित्रों और किसानो पर पुलिस का दमन बंद हो और  शराब भट्ठियाँ बंद की जाय।
मोगरा बांध की समस्या: एकजुट पहल का फैसला
मोगरा बांध की समस्या पर एक संयुक्त बैठक की गई, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर बात की गई। जिसमें प्रमुख थे:-
·         लोगों की जो जमीन सरकार ने छिनी थी उसका मुआवजा अभी तक क्यों नहीं मिला है।
·         जमीन का मुआवजा जो बढ़ाया जाना था वो अभी तक बढ़ाया नहीं गया है।
·         विस्थापित आदिवासियों की समस्याओं को अभी तक नहीं सुलझाया गया है।
·         मुआवजे के लिए दिये गए आवेदनों पर अभी तक कोेई प्रतिक्रिया नहीं आयी है।
इस बैठक में इन्हीं विषयों पर चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया कि यदि अब भी सरकार  हमारे बारे में नहीं सोचती है तो हमें संगठन को मजबूत बनाना होगा और संघर्ष करने के लिए आगे आना होगा।
शराब विरोधी आंदोलन
शराब विरोधी मंच के तत्वाधान में साहु भवन में एक बैठक आयोजित की गई जिसमें महिला मुक्ति मोर्चा, समता समाज सेवी संस्था, जुरमिल मोर्चा और छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के साथियों ने हिस्सा लिया। इस बैठक में शराब के विरोध में सहयोग, जनता की सीधी कार्यवाही में सहयोग, शराब माफिया और प्रशासन की युगलबंदी का विरोध, छोटे छोटे संगठन जो शराब का विरोध करते हैं उनको एकत्रित करना, प्रचार करना कि सरकार शराब के राजस्व का लोभ छोड़े, चुनाव के दौरान शराब के इस्तेमाल का तीव्र विरोध, शराब के विरोध में महिलाओं को संगठित करना, शराब के कारण होनेवाले दुष्प्रभावों के बारे में जागृति अभियान और छत्तीसगढ़ के अस्मिता के लिए संघर्ष आदि विषयों पर कार्य करने का निर्णय लिया गया। इसके साथ ही आगे राज्य-स्तरीय बैठक करने का निर्णय हुआ।
रैली और आमसभा का दौर लगातार जारी हैः-
कुनकुरी में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया, जिसमें आसपास के 500 गांवों से लगभग 20 हजार लोगों ने हिस्सा लिया। अनोखी बात यह रही कि इस रैली में लगभग दो तिहाई महिला थी। रैली के पश्चात लालगंज में एक आमसभा का आयोजन हुआ, जिसमें विभिन्न वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किया। जिसमें विस्थापन, जिंदल कम्पनी का विरोध, जमीन का मुआवजा, महिलाओं के साथ हो रही हिंसा, अकाल, राशन कार्ड आदि प्रमुख मुद्दे रहे साथ ही सरकार को एक ज्ञापन भी सौंपा गया। जिसमें प्रमुख मांगें थीः –
·         भूमि अधिग्रहण में पांचवीं अनुसूची तथा ग्राम सभा के निर्णयों का पूरी तरह पालन हो।
·         माईनिंग एण्ड मिनरल डेवलपमेंट रेगुलेशन बिल तुरंत पारित किया जाय।
·         जशपुर जिले के सभी जिंदल कार्यालयों को तत्काल हटाया जाये।
·         धान का कटोरा छत्तीसगढ़ विशेष आर्थिक क्षेत्र नहीं बल्कि विशेष कृषि क्षेत्र घोषित हो।
बाल्को में एक और चिमनी गिरी
27 जून 2010। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में वेदांत नियंत्रित भारत अल्युमिनियम कंपनी लिमि. (बाल्को) की एक और चिमनी ढह गई। यह घटना 26 जून की देर शाम को हुई। यह इस तरह की दूसरी घटना है, इससे पहले   23 सितम्बर 2009 को बाल्को की एक निर्माणाधीन चिमनी गिर गई थी जिसमें 41 लोग मारे गये थे। हालांकि 26 जून की घटना में किसी के घायल होने या मारे जाने की खबर नहीं है। दुर्घटना के समय 70 मजदूर चिमनी के नजदीक काम कर रहे थे। जब 70 मीटर ऊँची इस चिमनी का एक बड़ा हिस्सा ढह कर गिर गया।
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