संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

झारखण्ड : कोल ब्लॉक के खिलाफ गोलबंद दुमका के आदिवासी, गांवों में गूंजते नारे ‘जान देंगे जमीन नहीं’

झारखंड में दुमका जिले के शिकारीपाड़ा इलाके के गांवों में प्रस्तावित कोल ब्लॉक के खिलाफ आदिवासियों की गोलबंद तेज है. पिछले पांच महीने से शिकारीपाड़ा इलाके के अलग-अलग गांवों में बैठकें हो रही हैं. विरोध- प्रदर्शन का दौर जारी है. और इस दौरान नारे गूंजते रहे हैं- जान देंगे, जमीन नहीं.

इसी सिलसिले में 14 जुलाई 2019 को सरसडंगाल हटिया परिसर में ग्रामीणों ने बैठक कर आंदोलन को धारदार बनाने की सहमति बनाई. इसके बाद पारंपरिक हथियारों के साथ ग्रामीणों ने जुलूस निकाला. और नारे लागाए- कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द करो.

ग्राम प्रधान सोलेमान मरांडी कहते हैं कि जब आदिवासी जमीन देने के लिए नहीं तैयार हैं, तो सरकारी अधिकारी गांव- गांव में घूम कर कर जमीन की मापी के लिए क्यों परेशान हैं. ग्राम प्रधान के मुताबिक 22 गावों के लोगों की जमीन छीन जाने का खतरा है.

प्रधान हांसदा, सनत टुडू, सूरज हांसदा बताते हैं कि अधिकारियों को इस बात की जानकारी दी गई है कि आदिवासी जमीन नहीं देना चाहते. इसके बाद भी प्रत्यक्ष- परोक्ष तौर पर जमीन अधिग्रहण की कोशिशें जारी है.

ग्रामीणों के मुताबिक उत्तर प्रदेश की एक कंपनी के लिए सरकार जमीन अधिग्रहण करना चाहती है. ग्रामीणों में शिकारीपाड़ी के सीओ के खिलाफ भी गुस्सा है. दर्सल वही अधिकारी गांव के लोगों के बीच आते- जाते रहे हैं.

सिरवय हांसदा कहते हैं कि जल, जंगल और जमीन ही आदिवासी की जिंदगी है. लेकिन लगातार जमीन देने के लिए लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है. इसके लिेए ग्राम सभा में भी फूट डालने की कोशिश हो रही है.

सोम मुर्मू, डॉक्टर किस्कू कहते हैं कि इस मुहिम में अड़े रहने की वजह से हमलोगों के कामधान पर असर पड़ता है. लेकिन इससे गांवों में गुस्सा और बढ़ रहा है. शिकारीपाड़ा की जमीन पर क्यों नजर है. अगर जमीन के अंदर खान खनिज है, तो वह रैयतों का है.

मर्गाबनी अमराकुंडा

गौरतलब है कि शिकारीपड़ा के ही मर्गाबनी अमड़ाकुंडा इलाके में भी प्रस्तावित कोल ब्लॉक के खिलाफ आदिवासियों में उबाल है. पिछले अप्रैल महीने में कई आदिवासी गांवों के लोग गोलबंद होकर विरोध प्रदर्शन पर उतरे थे.
अमड़ाकुंडा के ग्राम प्रधान मितन मरांडी का कहना है कि प्रस्तावित कोल ब्लॉक के लिए आवंटन प्रक्रिया को रद्द करने के लिए जिले से लेकर राज्य के आला अधिकारियों को आवेदन दिया गया है. साथ ही राज्यपाल और राष्ट्रपति के नाम भी आवेदन भेजा गया है.

ग्राम प्रधान का कहना है कि 6.23 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कोल ब्लॉक के लिए आवंटित किया जा रहा है. और इसके जद में 18 गांव आते हैं. ये गांव पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र ( शिड्यूल एरिया) में हैं. जब गांव या ग्राम सभा जमीन देने के लिेए सहमत नहीं है, तो किन कारणों से प्रशासनिक हस्तक्षेप किया जा रहा है. आदिवासी इसी जमीन और जंगल के भरोसे जिंदगी जीते हैं.

शिकारीपाड़ा से जेएमएम के विधायक नलिन सोरेन कहते हैं कि ग्रामीण जमीन नहीं देना चाहते और सरकार चार गुणा मुआवजा का लोभ देकर जमीन लेना चाहती है. पहले भी इस इलाके में लोग जमीन बचाने की खातिर आंदोलन कर चुके हैं. और आंदोलन को दबाने के लिए गोलियां चलाई गई है.

उन्होंने स्थानीय अधिकारियों से कहा है कि इस तरह का काम नहीं हो, जिससे गांवों के साथ टकराव बढ़े. विधानसभा के मानसून सत्र में वे इस मामले को उठाएंगे. इसी मामले में शिकारीपाड़ा के अंचलाधिकारी का पक्ष लेने की कोशिश की गई, लेकिन संपर्क स्थापित नहीं हो सका.

Credit : www.publicbol.com

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