संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

मध्य प्रदेश : ‘पेसा कानून’ के बरक्स बसनिया बांध

आज के विकास की मारामार में सरकारें और कंपनियां उन कानूनों तक को अनदेखा कर रही हैं जिन्हें बाकायदा संसद में पारित किया गया है। इन कानूनों के मैदानी अमल के लिए बनाए जाने वाले नियमों में, मूल कानून की भावना को तोड़-मरोड़कर राज्य सरकारें उन्हें अपनी तरफ कर लेती हैं। प्रस्तुत है,  मध्यप्रदेश के मंडला जिले के बसनिया बांध में की गई इसी तरह की गफलत को उजागर करता राजकुमार सिन्हा का यह लेख;

‘लोकसभा न विधानसभा, सबसे ऊंची ग्रामसभा’ का नारा आदिवासी क्षेत्रों में आज भी जोर-शोर से गूंजता है। अधिकांश आदिवासी युवा संविधान के भाग (10) के संवैधानिक प्रावधानों और विस्थापन एवं भूमि-अधिग्रहण के सबंध में जोश से उल्लेख करते हुए मिल जाएंगे। महाकौशल के आदिवासी जिलों में ऊर्जा से भरे ऐसे युवक एवं युवतियों की टोली हर गांव – शहर में मिल जाएगा, जो ‘पेसा नियम – 2022’ की जानकारी रखते हैं। इनके विश्वास को मजबूत करते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने 15 नवम्बर 2022 को अनूपपुर में आदिवासी राष्ट्रपति की उपस्थित में ‘पेसा नियम’ को प्रदेश में अधिसूचित करने की घोषणा की थी।

सरकार ने प्रशासनिक अमले को आदिवासी क्षेत्रों में ‘पेसा नियम’ की मंशा के अनुसार कार्य करने की हिदायत दी है। एक दिसंबर 2022 को एक सार्वजनिक सभा में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान विडिओ में कहते हुए दिखाई पङ रहे हैं कि “बांध या किसी परियोजना के लिए जमीन लेने से पहले ग्रामसभा की सहमति लेना अनिवार्य होगा। अगर ग्रामसभा की सहमति नहीं है तो सरकार जमीन नहीं लेगी।’’ यह विडिओ क्षेत्र में काफी देखा जा रहा है।

नर्मदा घाटी में प्रस्तावित बसनिया बांध को लेकर तीन मार्च 2016 को विधानसभा में एक सवाल के जबाव में मुख्यमंत्री और ‘नर्मदा घाटी विकास मंत्री’ शिवराजसिंह चौहान ने लिखित में बताया था कि नर्मदा घाटी के सात बांधों को नए भूअर्जन अधिनियम से लागत में वृद्धि होने, अधिक डूब क्षेत्र होने, डूब क्षेत्र में वनभूमि आने से असाध्य होने के कारण निरस्त किया जाता है। इनमें बसनिया बांध भी शामिल था।

मुख्यमंत्री के इस जबाव से प्रभावित ग्रामीण निश्चिंत हो गए थे, लेकिन उन्हें स्थानीय समाचार पत्रों से जानकारी मिली कि ‘नर्मदा घाटी विकास विभाग’ और ‘एफकोन्स कम्पनी, मुम्बई’ के बीच 24 नवम्बर 2022 को बांध निर्माण के लिए अनुबंध संपादित हो गया है। इस अप्रत्याशित खबर से नाराज ग्रामीणों ने 27 दिसंबर 2022 को मंडला शहर में हजारों की संख्या में रैली निकालकर जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया, जिसमें उल्लेख किया गया कि मंडला जिला संविधान की ‘पांचवीं अनुसूची’ (आदिवासी क्षेत्र के लिए विशेष व्यवस्था) के तहत वर्गीकृत है और जहां ‘पेसा अधिनियम’ लागू हैं।

परियोजना के सबंध में प्रभावित ग्रामसभा को किसी भी तरह की जानकारी ‘नर्मदा घाटी विकास विभाग’ द्वारा नहीं दी गई। यह आदिवासियों को ‘पेसा अधिनियम’ के तहत प्राप्त संवैधानिक अधिकारों का हनन है। ‘पांचवीं अनुसूची’ और ‘पेसा अधिनियम’ के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों के तहत जब तक ग्रामसभा बांध बनाये जाने की स्वीकृति प्रदान नहीं करती तब तक कोई निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता, जबकि परियोजना प्रभावित गांवों द्वारा बांध निरस्त करने का प्रस्ताव पारित किया गया जा चुका है।

इधर, कलेक्टर से चर्चा कर ग्रामीणों को लौटे मात्र तीन दिन हुए थे कि 30 दिसंबर 2022 को हैदराबाद की कम्पनी की सर्वे टीम बांध का सर्वे करने गांव पहुंच गई। इसे देखकर ग्रामीण आक्रोशित हो गए और सर्वे टीम को बंधक बना लिया। यह खबर प्रभावित गांव में आग की तरह फैल गई और देखते-ही-देखते हजारों लोग इकठ्ठे हो गये। इसकी जानकारी क्षेत्रीय विधायक डाक्टर अशोक मर्सकोले को लगी तो उन्होंने ग्रामीणों से फोन पर बातकर शांति बनाए रखने का अनुरोध किया।

लोगों ने चर्चा के लिए कलेक्टर को आने की मांग रखी थी, परन्तु उनके बाहर होने के कारण चर्चा के लिए ‘नर्मदा घाटी विकास विभाग,’ मंडला के प्रभारी मूलचंद मरावी घटना स्थल पर पहुंचे। उन्होंने लिखित में आश्वासन  दिया कि सर्वे टीम बिना ग्रामसभा की अनुमति के गांव में प्रवेश नहीं करेगी। यह भी लिखित में दिया कि विभाग के सभी अधिकारी-कर्मचारी को मैं निर्देश देता हूं कि कोई भी चोरी-छिपे नहीं आएगा। यदि घुसते हैं तो पूरा जबावदार विभाग होगा। इस लिखित आश्वासन के बाद ग्रामीणों ने सर्वे टीम को छोङा।

14 जनवरी 2023 को एक कार्यक्रम में केन्द्रीय इस्पात राज्यमंत्री और क्षेत्रीय सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते बसनिया बांध के डूब प्रभावित गांव चकदेही आये हुए थे। उस दौरान प्रभावित क्षेत्र के लोग उनसे बांध निरस्त करने की मांग को लेकर मिलने आये तो उन्होंने बेहतर मुआवजा और पुनर्वास पैकेज लेने की बात की। लोगों ने मंत्री जी के इस प्रस्ताव को नकारते हुए कहा कि हम जमीन, जंगल और पुरखों की विरासत को डुबाना नहीं चाहते। हमारी आजीविका का मुख्य साधन खेती है। तब मंत्री जी ने कहा कि आप लोगों की सहमति नहीं है तो परियोजना आगे बढाने की कोई बात ही नहीं है।

विगत 20 जनवरी 2023 को ‘केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ की वेबसाइट से ज्ञात हुआ है कि ‘नदी घाटी प्रोजेक्टस’ के लिए मंत्रालय द्वारा गठित ‘विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ की बैठक 25 जनवरी 2023 को प्रस्तावित है। इस बैठक में देश की अन्य ‘नदी-घाटी परियोजनाओं’ के साथ नर्मदा घाटी में प्रस्तावित बसनिया बांध पर भी चर्चा होगी। बैठक में परियोजना निर्माता के आवेदन पर ‘विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ द्वारा ‘पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन’ की छानबीन के बिन्दु या शर्तें दी जाएंगी। लोगों का कहना है कि परियोजनाकर्ता ने आज तक प्रभावित ग्रामसभा से किसी तरह की अनुमति नहीं मांगी है, परन्तु भोपाल और दिल्ली से अनुमति मांगी जा रहा है।

यह सत्ता के केंद्रीकरण का एक उदाहरण है जो ‘पेसा अधिनियम’ की मंशा के विपरीत है। ‘पेसा अधिनियम- 2022’ में दिए गए प्रावधानों के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में भूअर्जन के समस्त मामलों में सबंधित ग्रामसभा की पूर्व सहमति प्राप्त की जाएगी। दूसरा, अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अर्जन, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में आदिवासी समुदाय पर सामाजिक असर निर्धारण के लिए जन-सुनवाई के दौरान ग्रामसभाओं के साथ परामर्श किया जाएगा। ग्रामसभा द्वारा प्रदत्त परामर्श को संज्ञान में लेते हुए सामाजिक प्रभावों का निर्धारण किया जाएगा।

पूंजीवादी प्रणाली में उत्पादन और वितरण समाजिक समानता, न्याय और पर्यावरण की सुरक्षा की बजाय निजी मुनाफे से संचालित होता है। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और विनाश पर आधारित विकास के कारण उन समुदायों को विस्थापित होना पङता है जो इन संसाधनों पर निर्भर हैं। विगत कुछ वर्षो से उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण की नीतियां हावी हो गई हैं। इनके चलते मानव केन्द्रित विकास के स्थान पर बाजार और मुनाफा केन्द्रित विकास का पैमाना मान लिया गया है।

अनुसूचित क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन आदिवासी समाज की बजाय कार्पोरेटस को दिए जा रहे हैं, परन्तु एक महत्वपूर्ण सफलता भी ग्रामसभा को मिली है। जब 2013 में ओडीशा की नियामगिरी में ‘वेदांता ग्रुप’ की बॉक्साइड खनन परियोजना के बारे में उच्चतम न्यायालय ने ग्रामसभा के अधिकारों की पुष्टि करते हुए खनन पर रोक लगा दी थी। दूसरी तरफ, प्रशासन और कम्पनी द्वारा आदिवासी समाज को धमकाकर या प्रलोभन देकर अपने पक्ष में सहमति का प्रस्ताव लेने के अनेकों उदाहरण हैं। इस संघर्ष में स्वयं ग्रामसभा की भी परीक्षा है कि गांव कितना एकजुट है। यह देखना दिलचस्प होगा कि पूंजी और सत्ता के सामने समाज की जीत होती है या कार्पोरेट की? इस संदर्भ में ‘पेसा अधिनियम’ और राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित नियम की समीक्षा भी होगी।साभार : सप्रेस

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