संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों के राज्यपालों को गृह मंत्रालय का दिशा-निर्देश

दिल्ली 26 मई 2022। पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों (राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना) में राज्यपालों द्वारा अपने संवैधानिक अधिकारों का समुचित पालन नहीं करने के कारण गृह मंत्रालय द्वारा 29 अप्रैल 2022 को राज्यपालों को एक दिशा निर्देश जारी किया गया है। पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों के राज्यपालों को व्यापक अधिकार मिले हुए हैं। इन क्षेत्रों में संसद और विधानसभा से पास कानून राज्यपाल की मंजूरी से ही लागू होते है। राज्यपाल यदि चाहे तो सामान्य अधिसूचना जारी करके संसद या विधानसभा द्वारा पारित किसी भी अधिनियम के बारे में यह निर्देश दे सकते हैं कि यह अधिनियम लागू नहीं होगा या संपूर्ण अनुसूचीत क्षेत्र में लागू होगा अथवा जरूरी फेरबदल के साथ किसी हिस्से में लागू होगा। इसके लिए जरूरी है कि राज्यपाल पहले उसे जनजातीय सलाहकार परिषद के पास भेजेंगे और इस अधिनियम का आदिवासियों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करवाएंगे, उसके बाद ही उस पर कोई कार्यवाही करेंगे। राज्यपाल द्वारा पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में हर वर्ष एक रिपोर्ट तैयार कर राष्ट्रपति को भेजने का भी नियम है लेकिन अभी तक किसी भी राज्यपाल ने गंभीरता से ऐसा नहीं किया है। अगर राज्यपाल इमानदारी से इस दिशा निर्देश का पालन करेंगे तो यह दिशा निर्देश 5 अनुसूचीत क्षेत्र के आदिवासियों के उत्पीड़न को रोकने में मददगार हो सकता है। 

राष्ट्रीय अनुसूचीत जनजाति आयोग की 14 वीं रिपोर्ट (2018-19) के पैरा 2.32.3(x) में दिये गए सुझाव और अवलोकन पर कार्यवाही करते हुए गृह मंत्रालय, दिल्ली द्वारा 29 अप्रेल 2022 को राज्यपाल के सभी प्रमुख सचिव व सचिव को पत्र लिख कर दिशा-निर्देश जारी किया गया है। पत्र में लिखा गया है कि राज्यपाल कार्यालय को पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में लागू होने वाले कानून, विनियमन, अधिसूचना को सावधानी पूर्वक परिक्षण करना चाहिए। यह अधिकार संविधान से मिला हुआ है। परन्तु वाकई में राज्यपाल इस शक्ति का इस्तेमाल करते हैं? पत्र में उल्लेख किया गया है कि राज्यपाल को यह अधिदेश दिया गया है कि आदिवासियों के कल्याण के लिए किये गए कार्य संबंधित रिपोर्ट प्रत्येक वर्ष राष्ट्रपति को दें। पांचवीं अनुसूची के राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गई रिपोर्ट आवश्यक रूप से जनता की पहुँच में होना चाहिए। राज्यपाल के सचिव को कहा गया है कि राष्ट्रीय अनुसूचीत जनजाति आयोग की 14 वीं रिपोर्ट के सुझाव को संवैधानिक परीपेक्ष में अपनाएँ।

ज्ञात हो कि अनुसूचीत क्षेत्रों में शांति और सुशासन के लिए राज्यपाल को पांचवीं अनुसूची के पैरा (2) के तहत विनिमय बनाने का व्यापक अधिकार दिया गया है। जिसमें राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार को सीमित किया गया है। परन्तु राज्यपाल को व्यापक विधायी और प्रशासनिक अधिकारों से सक्षम किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 244 में व्यवस्था है कि किसी भी कानून को पांचवीं अनुसूची वाले क्षेत्र में लागू करने के पूर्व राज्यपाल उसे जनजातीय सलाहकार परिषद को भेजकर अनुसूचीत जनजातियों पर उसके दुष्प्रभाव का आकलन करवाएंगे और तदनुसार कानून में फेरबदल के बाद उसे लागू किया जाएगा। इस संवैधानिक व्यवस्था की अनदेखी की जाती रही है। राष्ट्रीय अनुसूचीत जनजाति आयोग के सुझाव एवं अवलोकन पर गृह मंत्रालय द्वारा लिए गए संज्ञान का स्वागत करते हैं।

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