संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad
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राज्यवार रिपोर्टें

संघर्ष का टेम्पलेट जो किसान आंदोलन ने दिया है

संयुक्त किसान मोर्चा ने 378 दिन के बाद अपने आंदोलन को स्थगित करते हुए कहा कि ‘लड़ाई जीत ली गई है, लेकिन किसानों के हक-खास कर एमएसपी को किसानों के कानूनी अधिकार के रूप में हासिल करने का युद्ध जारी रहेगा।’ अब रद्द हो चुके तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए इस आंदोलन ने इस वाक्य में अपनी सफलता और बाकी रह गए अपने लक्ष्य- दोनों को सटीक ढंग से…
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छत्तीसगढ़ में लौह अयस्क के खनन के लिए जंगलों की कटाई

छत्तीसगढ़ में देश का 19 फीसदी लौह अयस्क भंडार है और इसके खनन की वजह से पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। छत्तीसगढ़…

किसान आंदोलन के पूरे 13 महीने का ब्योरा : कब, कहाँ, क्या हुआ

‘378’... ये महज़ एक संख्या नहीं बल्कि वो दिन और राते हैं, जो हमारे देश के अन्नदाताओं ने दिल्ली की सड़कों पर गुज़ारी…

छत्तीसगढ़ : जब तक हसदेव के समस्त कोयला खदानों को निरस्त नहीं किया जाता संघर्ष जारी रहेंगा

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति द्वारा 10 दिसंबर 2021 को ग्राम मदनपुर में छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी, शहीद वीर नारायण सिंह की शहादत और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में हसदेव बचाओ सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में हसदेव अरण्ड क्षेत्र के 35 गांव के हजारों ग्रामीण आदिवासी शामिल हुए। सम्मेलन को संबोधित करते हुए संयोजक…
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मध्य प्रदेश : ‘पेसा’ से उलट ‘पेसा’ के नियम

मध्य प्रदेश सरकार को करीब ढाई दशक पहले संसद में पारित ‘पेसा कानून’ की अब जाकर सुध आई है। पांच महीने पहले ‘पेसा’ के…

छत्तीसगढ़ : केंद्र व राज्य सरकार ‘हसदेव अरण्य क्षेत्र’ में कोयला खनन की मंजूरी दे…

-महिबुल संभवत: देश के सबसे घने जंगल में से एक, हसदेव अरण्य में अडानी को कोयला खदान की मंजूरी दे कर छत्तीसगढ़ सरकार…

छत्तीसगढ़ : कुसमुंडा खदान भू-विस्थापित 40 वर्ष बाद भी रोजगार के लिए भटक रहे हैं; आंदोलन जारी

कुसमुंडा में कोयला खनन के लिए 1978 से 2004 तक कई गांवों के हजारों किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था। लेकिन अधिग्रहण के 40 वर्ष बाद भी भू-विस्थापित रोजगार के लिए भटक रहे हैं और एसईसीएल दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं। पढ़िए न्यूज़क्लिक से साभार रिपोर्ट; कोयला खनन के लिए दशकों पूर्व भूमि अधिग्रहण में अपनी जमीन खोने वाले भू-विस्थापित आज भी मुआवजे…
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उत्तराखण्ड : बांधों से बेहाल हिमालय

साठ के दशक में ‘नए भारत के तीर्थ’ माने गए बड़े बांध आजकल किस तरह की त्रासदी रच रहे हैं, इसे देखना-समझना हो तो केवल उत्तराखंड की यात्रा काफी होगी। गंगा और उसकी अनेक सहायक नदियों पर जल-विद्युत, सिंचाई और बाढ़-नियंत्रण की खातिर ताने जा रहे असंख्य बड़े बांधों ने हिमालय का जीना मुहाल कर दिया है। प्रस्तुत है, इसी की पड़ताल करता प्रमोद भार्गव का यह लेख;…
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