फैजाबाद हिंसा एकतरफा और प्रयोजित: जाँच दल
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में दुर्गा पूजा के दिन 24 अक्टूबर 2012 को दो समुदायों के बीच हुई हिंसक झड़पों से उपजे तनाव के कारण करीब दो सप्ताह तक कर्फ्यू जारी रहा. इस पुरे घटनाक्रम का जायजा लेने एंव प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने एक स्वतंत्र जांच दल ने 3 नवम्बर 2012 को भ्रमण किया. इस जाँच दल में युगल किशोर शरण शास्त्री, खालिक अहमद खान, विनय श्रीवास्तव,…
और पढ़े...
झारखण्ड: जनद्रोही क़ानूनों और राज्य दमन के ख़िलाफ़ आंदोलन तेज होगा
गुजरी 16 अक्टूबर से एक के बाद एक फर्जी केस लगाकर दयामनी बारला को झारखंड पुलिस न केवल जेल में रखे हुए है बल्कि…
आदिवासी लडेंगे, पीछे नहीं हटेंगे
जंगसाय कोया गोंड आदिवासी हैं और सरगुजा के निवासी हैं। वे दसवीं के छात्र थे जब 2000 में अलग राज्य बना और ज़मीनों…
छत्तीसगढ़ महतारी की नीलामी का राज्योत्सव
महामहिम राष्ट्रपति ने कल शाम छत्तीसगढ़ की नयी राजधानी नया रायपुर में बने राज्य के नये मंत्रालय भवन और विभागाध्यक्ष भवन का लोकार्पण किया और इसी के साथ राज्योत्सव का समापन हो गया। यहां सब कुछ नया था, शानदार और शंहशाही था। हां, इस जादुई मेले के बाहर सब कुछ ज़रूर वही पुराना था- भुखमरी और ग़रीबी का नज़ारा, कल्याणकारी सरकर की ज़्यादतियों और बेदिली के…
और पढ़े...
जेल से दयामनी बारला की चिठ्ठी
आप सबों को जोहार,
मैंने झारखंड की धरती को कभी धोखा नहीं दिया. झारखंड की जनता के सवालों से कभी समझौता नहीं किया.…
बर्बर पुलिसिया दमन के विरोध में मध्य प्रदेश भवन पर प्रदर्शन
मेधा पाटकर का छिन्दवाड़ा की जेल में भूख हड़ताल का दूसरा दिन
आज भी नहीं सुनी सिटी मजिस्ट्रेड ने जमानत…
छत्तीसगढ़ को लूटने का राज्योत्सव
अदम के शेरअदम का मतलब है वंचित। अदम गोंडवी सचमुच पूरी उम्र अभाव और ग़रीबी में जिये- अदम थे, अदम ही रहे। वे कुल पांचवां दर्ज़ा पास थे लेकिन कहना होगा कि ज़िंदगी और समाज के सबसे बड़े विश्वविद्यालय से उन्होंने शायरी में पीएचडी हासिल की थी और इसीलिए बग़ावत की शायरी के आला फ़नकार बन गये। पिछले साल दिसंबर में उन्होंने गंभीर बीमारी से जूझते हुए अपनी आख़िरी सांस…
और पढ़े...
उद्योगों के लिए खेती पर हमला
छत्तीसगढ़ में खेती संकट में है। नदी और जंगल भी संकट में है। लोगों की हालत बहुत पतली है, लगातार और पतली होती जा रही…
लोकतंत्र रामलीला मैदान में कैद, छिंदवाडा में सरकारी-कारपोरेट राज
छिंदवाडा में सत्याग्रह पर बैठी मेधा पाटकरपिछले तीन दिनों में दिल्ली और छिंदवाडा पर एक साथ नज़र डालें तो यह साफ़ हो…
श्रम शक्ति की लूट के बग़ैर कोई मुनाफ़ा मुमकिन नहीं
सस्ते श्रम के दोहन से शुरू होता है लूट, भ्रष्टाचार और विस्थापन और जो अंतत: पूंजी और संसाधनों का केंद्रीयकरण करता है। इस प्रक्रिया को सहज बनाने के लिए ही मजदूर आंदोलन को विभिन्न मुद्दों को लेकर जारी जन संघर्षों से काट देने और उसे मजदूरों के आर्थिक संघर्षों तक सीमित कर देने की राजनीति को हवा दी जाती है। मजदूरों और उनके जुझारू नेतृत्व को इसे समझना…
और पढ़े...