जलवायु परिवर्तन : खेती पर मंडराता खतरा
मौजूदा विकास के साथ जो संकट सर्वाधिक महसूस किया जा रहा है, वह है- जलवायु परिवर्तन का। जिस तौर-तरीके से हम अपना विकास करने में लगे हैं उससे धीरे-धीरे पहले प्रकृति, फिर वनस्पतियां और फिर खेती समाप्त होती जाएंगी। आम लोगों पर क्या होगा इसका असर? सप्रेस से साभार पंकज चतुर्वेदी का आलेख;
जलवायु परिवर्तन की ‘अंतर सरकारी समिति’ (आईपीसीसी) की ‘जलवायु…
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कोरबा की दीपका खदान विस्तार योजना की जनसुनवाई रद्द
कोरबा 23 मार्च 2022: एसईसीएल के मेगा प्रोजेक्ट में शामिल देश की तीसरी सबसे बड़ी दीपका कोयला खदान के विस्तार की…
झारखण्ड : नेतरहाट फायरिंग रेंज के विरोध में लातेहार में जुटान; 22-23 मार्च 2022
जोहार साथियों,
17 मार्च 2022 लातेहार। नेतरहाट फायरिंग रेंज के अंतर्गत 1471 किलोमीटर भौगोलिक क्षेत्र और 245 गांव को चिन्हित किया गया। उस वक्त के हिसाब से 2.5 लाख लोग जिसमें 90 से 95 प्रतिशत आदिवासी थे, उन्हें विस्थापित होना था। 22 -23 मार्च 1994 को सेना की टुकड़ी अभ्यास के लिए अधिसूचित क्षेत्र में प्रवेश करने वाली थी. इसके विरोध में प्रभावित…
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गुजरात : तापी पार नर्मदा लिंक परियोजना के विरोध में आदिवासियों का प्रदर्शन
अगर ये तीन बड़े बांध बन गए तो 35 से ज्यादा गांवों के 1700 से ज्यादा परिवारों की जमीनें और घर जलमग्न हो जाएंगे.50…
मोदी सरकार की स्वामित्व योजना आदिवासियों के सामुदायिक अधिकारों को खत्म करने की साजिश : दयामनी बारला
झारखण्ड के खूंटी जिले में केंद्र की स्वामित्व योजना के तहत बनने वाले व्यक्तिगत संपति कार्ड के विरोध में आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच के सयुक्त बैनर पर 8 मार्च 2022 को खूंटी के जादुरा मैदान में जन सभा का आयोजन किया गया। सभा में वक्ताओं ने मांग कि सरकार आदिवासी मूलवासी किसानों के परंपरागत अधिकार सीएनटी/एसपीटी एक्ट, मुंडारी खूंटकटी अधिकार,…
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छत्तीसगढ़ : अडानी से जंगल और ज़मीन बचाने के लिए आदिवासियों ने शुरू किया…
पिछले 7 दिनों से परसा कोल ब्लॉक के विरोध में हरिहरपुर, फतेहपुर साल्ही आदि गांव के आदिवासी धरने पर बैठे है।
परसा…
मध्य प्रदेश सरकार का ग्राम सभाओं को कमजोर करना आदिवासियों के संवैधानिक मूल्यों का हनन है
केन्द्रीय पेसा कानून, न्यायालयों के आदेश और संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद मध्य प्रदेश सरकार ने अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं के अधिकारों को कमजोर करने के उद्देश्य से पेसा कानून के तहत वन भूमि, न्याय संबंधित कानूनों में संशोधन न करके ग्रामसभाओं को कमजोर ही किया है।
ब्रिटिश सरकार के शिकंजे से जो आदिवासी समाज मुक्त रहा उसे आजादी के बाद…
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