संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad
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झारखण्ड

नगड़ी के रैयतों को न्याय कौन देगा?

नगड़ी के भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन पर ग्लैडसन डुंगडुंग कि एक रिपोर्ट :-झारखण्ड एक विशिष्ट राज्य है, जहां 32 विभिन्न तरह के आदिवासी समुदाय निवास करते हैं, जिनकी अपनी अद्भूत संस्कृति है। उनकी संस्कृति, आजीविका एवं अस्तित्व प्राकृतिक संसाधनों - जल, जंगल और जमीन पर आधारित है। छोटानागपुर काश्तकारी…
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कांके-नगड़ी में भूमि अधिग्रहण के विरोध में स्थानीय आदिवासियों का संघर्ष

कांके-नगड़ी में सरकार जमीन अधिग्रहण कानून 1894 के तहत 1957-58 में राजेंन्द्र कृर्षि विश्वविद्यालय के विस्तार के लिए 227 एकड़ जमीन अधिग्रहण का विरोध राईयतों द्वारा 1957-58 से लेकर आज तक जारी हैं। वर्तमान सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहण का नोटिफिकेशन के साथ ही राईयतों ने विरोध करना शुरू किया। ग्रामीणों के विरोध के कारण ही सरकार जमीन का अधिग्रहण नहीं कर…
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पूर्वी सिंहभूम, झारखण्ड से पोटका आंदोलनः एक इतिहास

भाग- 1झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने सत्ता पर बैठते ही विकास के नाम पर यहां के प्राकृतिक…

सर्वे टीम को वापस किया आदिवासी महिलाओं की एकजुटता ने

पश्चिम सिंहभूम (झारखण्ड) जिले के नोआमण्डी ग्राम पंचायत क्षेत्र के गांव से सरकारी सर्वे टीम को गांव की आदिवासी महिलाओं ने 30 जुलाई 2011 को वापस खदेड़ दिया। हुआ यूं कि गांव में कुछ सर्वे (भूमि का सर्वे) का काम करने के लिए एक सरकारी सर्वे टीम आ टपकी.... इस पंचायत के आसपास के क्षेत्रों में जिंदल-भूषण जैसी कम्पनियां सरकार की मदद से भूमि कब्जाने…
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झारखंड के सारंडा जंगल में आदिवासियों पर पुलिसिया जुल्म: एक सच्ची तस्वीर

10 अक्टूबर, 2011 को झारखंड मानव अधिकार आन्दोलन द्वारा तैयार सारंडा का शाब्दिक अर्थ सात सौ छोटी पहाड़ियों वाला…

कोयला खदान में जल भराव के कारण हुई थी 375 लोगों की जल समाधि, दोषियों को 36 साल बाद दी गयी सजा, वह भी एक साल की

एक लोकतांत्रिक देश में जहां पर दिल्ली जैसे शहर में 12 रुपये बिजली बिल का बकाया होने पर काली सूची में डाल दिया जाता है वहीं पर 36 साल पहले 375 मजदूरों को जल समाधि दिलाने वालों को झारखण्ड की एक निचली अदालत में मात्र एक साल की सजा दी जाती है वह भी 34 साल तक चले अदालती मुकदमे के बाद.......करीब 36 साल पहले चासनाला तत्कालीन बिहार राज्य जो अब झारखण्ड…
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